उत्तराखंड ने अपनी महान वीरांगना तीलू रौतेली के अदम्य शौर्य-वीरता को किया याद


आज 8 अगस्त है. यह तारीख उत्तराखंड वासियों में अदम्य, शौर्य-वीरता के लिए याद की जाती है. आज महान वीरांगना तीलू रौतेली का जन्मदिन है. इस मौके पर पूरी देवभूमि अपनी महान योद्धा बेटी को याद करते हुए नमन कर रही है. कोरोना महामारी की वजह से राज्य सरकार ने हालांकि कोई बड़े कार्यक्रम आयोजित नहीं किए हैं, लेकिन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महान वीरांगना तीलू रौतेली के जन्मदिन पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं.

आपको बताते हैं महान योद्धा तीलू रौतेली कौन थी तीलू रौतेली एक ऐसा नाम हैं जो रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, जियारानी जैसी पराक्रमी महिलाओं में अपना एक उल्लेखनीय स्थान रखता हैं. 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है. तीलू का मूल नाम तिलोत्तमा देवी था. इनका जन्म 8 अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़, चौंदकोट (गढ़वाल) के भूप सिंह (गोर्ला)रावत तथा मैणावती रानी के घर में हुआ.

तीलू के दो भाई भगतु और पत्वा थे. 15 वर्ष की उम्र में तीलू की सगाई हो गई. इसी उम्र में गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवारबाजी के सारे गुर सिखा दिए. बचपन में ही तीलू ने अपने लिए सबसे सुंदर घोड़ी ‘बिंदुली’ का चयन कर लिया था. तीलू रौतेली ने इसी घोड़ी से अपने सातों युद्ध में विजय प्राप्त की थी.

कत्यूरों के अत्याचार के खिलाफ तीलू रौतेली ने उठाई थी तलवार
देवभूमि में कहा जाता है कि लोग कत्यूरों के अत्याचारों से बहुत परेशान थे. जब भी गढ़वाल में फसल काटी जाती थी वैसे ही कुमाऊं से कत्यूर सैनिक लूटपाट करने आ जाते थे. फसल के साथ-साथ ये अन्य सामान और बकरियां तक उठाकर ले जाते थे. ऐसे ही एक आक्रमण में तीलू के पिता, दोनों भाई और मंगेतर शहीद हो गए थे. इस भारी क्षति से तीलू की मां मैणा देवी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने तीलू को आदेश दिया कि वह नई सेना गठित करके कत्यूरों पर चढ़ाई करे.

इसके बाद तीलू ने फौज गठित की, तब उनकी उम्र महज 15 साल की थी. लगातार 7 वर्षों तक बड़ी चतुराई से तीलू ने रणनीति बनाकर कत्यूरों का सर्वनाश कर दिया. बेला और देवकी ने भी तीलू के साथ लड़ाई लड़ी. कुमाऊं में जहां बेला शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवकी के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं. अंत में जब तीलू लड़ाई जीतकर अपने गांव गुराड वापस आ रही थी तो रात को पूर्वी नयार में स्नान करते समय कत्यूर सैनिक रामू रजवाड़ ने धोखे से उनकी हत्या कर दी.

आज लगभग 350 वर्ष के बाद भी उत्तराखंड के लोग अपनी महान वीरांगना के शौर्य-वीरता को नहीं भूले हैं. अपूर्व शौर्य, संकल्प और साहस की धनी वीरांगना, जिसे गढ़वाल के इतिहास में झांसी की रानी कहकर याद किया जाता है.

वीरांगना तीलू के जन्मदिन पर महिलाओं को दिए जाते हैं राज्य स्तरीय पुरस्कार
राज्य सरकार हर वर्ष योद्धा तीलू रौतेली के जन्मदिन पर महिलाओं को पुरस्कृत करती है, प्रदेश सरकार की ओर से उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को हर साल पुरस्कृत किया जाता है. उत्तराखंड की 21 महिलाओं को इस वर्ष के तीलू रौतेली राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. 22 आंगनबाड़ी वर्कर को भी विभागीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. पुरस्कार वितरण समारोह कल शनिवार को तीलू रौतेली के जन्मदिन पर वर्चुअल माध्यम से होगा.

तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चुनी गई महिलाओं को 21 हजार की धनराशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है. जबकि, चयनित आंगनबाड़ी वर्कर को दस हजार की राशि दी जाती है. प्रदेश की राज्यमंत्री रेखा आर्य ने बताया कि इस साल कोविड के कारण सचिवालय से वर्चुअल समारोह के जरिए पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे.

यहां हम आपको बता दें कि 15 से 20 साल की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली विश्व की एकमात्र वीरांगना है, जिनकी जयंती पर प्रदेश सरकार की ओर से उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को हर साल पुरस्कृत किया जाता है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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