गणेशोत्सव विशेष: धर्म के साथ आजादी की लड़ाई में भी लोगों को एकजुट करने में गणेशोत्सव की रही बड़ी भूमिका


आज बात होगी गणेश बप्पा यानी गणेश उत्सव की.शनिवार से शुरू हुए गणेश महोत्सव की धूम पूरे देश भर में है. 10 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में लोग धार्मिक रंगों में नजर आते हैं. हिंदुओं के आराध्य गजानंद को पहले दिन घर में विराजमान करते हैं, उसके बाद गणेश की प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है. विसर्जित करने का आयोजन पूरे 10 दिन चलता है. गणेश महोत्सव धार्मिक आयोजन के साथ देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भी जाना जाता है.

हिन्दू पंचांग के अनुसार यह उत्सव भाद्रपद माह की चतुर्थी से चतुर्दशी तक दस दिनों तक चलता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं. देश में गणेश उत्सव की शुरुआत कब, किसने और इन परिस्थितियों में की, आइए जानते हैं .‌ पूरे भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र के पुणे से हुई थी.

हम आपको बता दें कि पुणे का गणेशोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस उत्सव की शुरुआत शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई द्वारा की गई थी. आगे चलकर पेशवाओं ने इस उत्सव को बढ़ाया और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई.


बाल गंगाधर तिलक ने इस धार्मिक उत्सव को एक आंदोलन का भी रूप दिया था
छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद पेशवा राजाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया. पेशवाओं के महल पुणे के लोग और पेशवाओं के सेवक काफी उत्साह के साथ हर साल गणेशोत्सव मनाते थे.लेकिन जब तक यह धार्मिक आयोजन जन-जन तक नहीं पहुंच पाया था.ब्रिटिश काल में लोग किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे, लोग घरों में पूजा किया करते थे.

उसके बाद महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के भारत में बढ़ते अत्याचारों को रोकने के लिए वर्ष 1893 में गणेश उत्सव को महाराष्ट्र के पुणे शहर में सार्वजनिक रूप दिया था.आगे चलकर बाल गंगाधर तिलक का प्रयास उनका एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई.

गणेशोत्सव में वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू आदि लोग भाषण देते थे और लोगों को संबोधित करते थे. गणेशोत्सव स्वाधीनता की लड़ाई का एक मंच बन गया था. लोगों के इस धार्मिक आयोजन में एकजुट होने पर अंग्रेजों के भी पैर उखड़ गए थे.इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.


आज यह धार्मिक उत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया है
क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के द्वारा शुरू किया गया गणेश उत्सव का स्वरूप धीरे-धीरे देश ही नहीं दुनिया भर में तेजी के साथ बढ़ता गया .‌ भारत देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े भगवान गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए. वर्तमान में महाराष्ट्र में ही साठ हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेश मंडल हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है.

इतना ही नहीं अब विदेशों में भी गणेशोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है. भारत में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान के नाम के साथ ही की जाती है.इस तरह की सभी पूजा या फिर शुभ कार्यों की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा के साथ होती है. कोई भी धार्मिक उत्सव, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है.

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गणेश उत्सव की सबसे अधिक धूम रहती है
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गणेश उत्सव की सबसे अधिक धूम दिखाई पड़ती है. भगवान गणपति बप्पा फिल्म इंडस्ट्रीज के तमाम सेलिब्रिटीज के भी आराध्य माने जाते हैं.कई फिल्मी सितारे गणेश गणेश चतुर्थी के दिन गजानन को अपने घर पर विराजते हैं. यही नहीं फिल्मी पर्दे पर भी गणेश उत्सव दिखाई पड़ता रहा है. मुंबई के लालबाग राजा की गणेश उत्सव में सबसे अधिक मान्यता भी देखी जाती है.विसर्जन के दौरान पूरा मुंबई शहर भावुक नजर आता है.

यही नहीं उस दौरान ‘बप्पा मोरिया तू अगले बरस जल्दी आ’ सुनकर हजारों भक्तों की आंखों में आंसू भी देखे जाते हैं.देश में कोरोना संक्रमण चल रहा है. ऐसे में यह धार्मिक आयोजन का उल्लास फीका रहेगा, लेकिन बप्पा के प्रति श्रद्धालुओं की दीवानगी कम नहीं होंगी. गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है.

महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है. दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है. मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं.


शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

तिलक ने जनमानस में सांस्कृतिक चेतना जगाने और लोगों को एकजुट करने के लिए ही सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की

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