राज्यसभा चुनावों में भाजपा की ‘डबल उम्मीदवारी’ में उलझती सियासत का नया खेल


आज हम बात सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ से करेंगे. इस फिल्म का खबर में उल्लेख इसलिए कर रहे हैं कि इसका एक संवाद है जो भाजपा के ऊपर फिट बैठता है. फिल्म में अमजद खान गब्बर सिंह बने थे. शोले में गब्बर सिंह का डायलॉग ‘अरे ओ सांभा कितने आदमी थे’. सांभा कहते हैं, सरदार दो आदमी थे. उसके बाद गब्बर सिंह का जवाब आता है और ‘तुम तीन’. अब बात आगे बढ़ाते हैं.

फिल्म शोले की तर्ज पर ही भारतीय जनता पार्टी को राज्यसभा चुनावों में एक या दो सीटें जीतने की संभावना रहती है लेकिन वह उससे अधिक अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में खड़ा कर सभी का ‘सियासी गणित’ उलझा कर रख देती है. इसको हम अगर सरल भाषा में समझे तो भाजपा के लिए उस राज्य से एक सीट राज्य सभा जीतने की गारंटी है, लेकिन वह दो उम्मीदवारों को खड़ा कर आखिरी मौके तक सियासी गणित उलझाती रही है.

इसी वर्ष जून महीने में हुए गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने अधिक उम्मीदवारों को खड़ा कर विपक्षी पार्टियों का समीकरण बिगाड़ने की कोशिश की थी. हालांकि भाजपा इस ‘नए खेल’ में सफल नहीं हुई थी. अब हम बात करेंगे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की. एक अगस्त को राजसभा सांसद अमर सिंह के निधन के बाद उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की एक सीट खाली हुई है.‌ पिछले बार की तरह यहां भी भाजपा ने एक सीट के लिए अपने ही ‘दो उम्मीदवारोंं’ को चुनाव मैदान में खड़ा करके उत्तर प्रदेश की राजनीति को फिर पशोपेश में ला दिया.

लेकिन इस बार भाजपा का यह दांव गले की फांस बना हुआ है. वह कुछ इस प्रकार, भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव के लिए पहले मुस्लिम उदारवादी चेहरा सैयद जफर इस्लाम का पर्चा नामांकन कराया, उसके बाद भाजपा केंद्रीय आलाकमान से ‘ब्राह्मण लॉबी’, से आने वाले गोविंद नारायण शुक्ला का भी राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन करा दिया है.‌ हालांकि प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए आज शाम तक नाम वापस लेने का अंतिम दिन भी है, लेकिन भाजपा केंद्रीय आलाकमान तय नहीं कर पा रहा है कि वह कौन से उम्मीदवारों को प्राथमिकता दें ?

एक सीट के लिए जफर इस्लाम और गोविंद नारायण शुक्ला भाजपा के उम्मीदवार
यहां हम आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की एकमात्र सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर सैयद जफर इस्लाम और गोविंद नारायण शुक्ल ने नामांकन पत्र दाखिल किए हैं. भाजपा के इन दोनों नेताओं के नामांकन पत्र जांच में सही पाए गए हैं, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी महेश कुमार का नामांकन निरस्त कर दिया गया था. एक सीट पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से दो प्रत्याशी मैदान में होने से मामला काफी दिलचस्प हो गया है.

शुक्रवार को नामांकन वापसी की आखिरी तारीख है, ऐसे में देखना होगा कि जफर इस्लाम और गोविंद नारायण शुक्ला में से कौन अपना नाम वापस लेता है? इन दोनों प्रत्याशियों में से एक को तो नाम वापस लेना पड़ेगा ? आज शाम तक देखना होगा कि दोनों में से किस प्रत्याशी को भाजपा ‘प्राथमिकता’ देती है. पहले बात करते हैं जफर इस्लाम की. जफर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पार्टी के उदारवादी मुस्लिम चेहरा हैं. भाजपा हाईकमान की तरफ से जफर इस्लाम को प्रत्याशी बनाया गया है. बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल कराने के इनाम के तौर पर उन्हें प्रत्याशी बनाया गया है.

अब बात करेंगे भाजपा के दूसरे राजसभा उम्मीदवार शुक्ला की. गोविंद नारायण शुक्ला भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं, जो मौजूदा समय में यूपी बीजेपी संगठन में महामंत्री भी हैं, वो अमेठी से आते हैं और ब्राह्मण समुदाय से हैं. मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में ‘ब्राह्मण पॉलिटिक्स’ को देखते हुए अब भारतीय जनता पार्टी पशोपेश में है कि शुक्रवार को गोविंद नारायण शुक्ला से कैसे नामांकन वापस कराया जाए? इस मामलेे में उत्तर प्रदेेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने कहा कि पार्टी में दूसरा नामांकन केवल औपचारिकता के लिए कराया है, लेकिन उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में चर्चा है कि शुक्ला के नामांकन कराने के पीछे ब्राह्मण लॉबी के ‘दबाव’ के चलते पार्टी यह फैसला लेना पड़ा है.


राजस्थान में भाजपा ने राज्य सभा चुनाव के लिए एक सीट के लिए खड़े किए थे दो प्रत्याशी
राजस्थान में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए 19 जून को हुए चुनाव में संख्या बल के मुताबिक दो सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार की जीत तय थी. ऐसा तब संभव था जब कांग्रेस के दो और बीजेपी की ओर से एक उम्मीदवार मैदान में होते. तब तीनों सीटों पर निर्विरोध चुनाव सम्पन्न होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कांग्रेस ने केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को अपना प्रत्याशी बनाया वहीं भाजपा ने पहले राजेंद्र गहलोत फिर ओंकार सिंह लखावत को भी अपने दूसरे प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतार दिया था. यहां हम आपको बता दें कि राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं.

भाजपा और कांग्रेस के दो, दो प्रत्याशी खड़े होने के बाद एक प्रत्याशी को जीतने के लिए 51 वोट चाहिए था. संख्या बल के अनुसार सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी का पलड़ा भारी था, लेकिन फिर भी भारतीय जनता पार्टी ने सियासी उठापटक और ‘बाड़ेबंदी’, की. भाजपा केेे राजस्थान में राज्य सभा चुनाव के दौरान किए गए सियासी दांवपेच में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार में ‘खलबली’ मचा दी. हम आपको बता दें कि राज्य में 200 विधानसभा सीटों में सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास लगभग 105 विधायक थे, इसलिए कांग्रेस को दो सीटों पर जीत तय थी. लेकिन दूसरी ओर बीजेपी के पास कुल 75 सीटें हैं और उनका पहला प्रत्याशी की 51 वोटों से जीत तय थी.

लेकिन बीजेपी के 51 वोट पहले प्रत्याशी को डाले जाने के बाद भी 24 वोट बच रहे थे. ऐसे में भाजपा 27 अन्य वोट जुगाड़ करने की ‘सेंधमारी’ में लगी हुई थी. अगर भाजपा इसमें कामयाब हो जाती तो उसका दूसरा उम्मीदवार भी राज्यसभा पहुंच सकता था. लेकिन भाजपा का यह सियासी दांव सफल नहीं हुआ था. आखिरकार कांग्रेस के केसी वेणुगोपाली और नीरज डांगी ने राज्यसभा चुनाव में विजयी घोषित हुए. वहीं भाजपा के उम्मीदवार राजेंद्र गहलोत विजयी रहे जबकि ओंकार सिंह लखावत को पर्याप्त बहुमत नहीं मिल सका.

शंभू नाथ गौतम वरिष्ठ पत्रकार

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