इन ट्रेनों का रंग यूं ही नहीं किया जाता तय, जानें इनके पीछे का कारण

रेलवे ने भी विकास की लंबी यात्रा तय की है और भाप के इंजन से हम इलेक्ट्रिक इंजन की ओर आ गए हैं और आगे भी तरक्की का सफर जारी है.

ट्रेन में यात्रा करते समय हम ये तो जानते हैं कि पैसेंजर ट्रेन है, सुपरफॉस्ट है , शताब्दी है या दुरंतो, मगर क्या कभी आपने ट्रेन के कोच पर गौर किया उसके रंग के बारे में कभी सोचा है तो हम आपको बताते हैं कि कोच के अलग-अलग रंग के अपने मायने हैं और उसके अपने संदर्भ हैं आइए जानते हैं इनके बारे में…

यात्री ट्रेन में दो रंग के डिब्बे देखने को मिलते हैं एक डब्बा लाल रंग का होता है और दूसरा नीले रंग क्या आप इस रंग का मतलब जानते हैं क्यों ये अंतर रखा जाता है. इन ट्रेनों का रंग यूं ही नहीं तय किया जाता है इसके पीछे कुछ विशेष कारण होते हैं. कोच की डिजाइन और उनकी अलग-अलग विशेषताओं के आधार पर उनके रंग तय किये जाते हैं.

नीले रंग के डिब्बे- आपने देखा होगा कि अधिकतर ट्रेनों का रंग नीला होता है गौर हो कि 90 के दशक में सभी भूरे लाल रंग के ट्रेनों को बदल कर नीला कर दिया गया था.

लाल रंग के ट्रेन डिब्बे- लाल रंग के कोच को लिंक हॉफमेन बुश (LHB) कोच कहा जाता है,इसकी फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में स्थित है और ये कोच जर्मनी से भारत लाए गए थे, ज्यादातर राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों के रंग लाल होते हैं, इनमें सभी कोच वातानुकूलित (AC) होते हैं, ये कोच अल्युमीनियम से बनए जाते हैं, इस वजह से हल्के होते हैं.

हरे रंग के ट्रेन डिब्बे- गरीब रथ के ट्रेन में हरे रंग के कोच का उपयोग किया जाता है, आपने देखा होगा कि भारतीय रेल ने जितनी भी गरीब रथ ट्रेनों की शुरुआत की है उन सभी का रंग हरा होता है.

भूरे रंग के ट्रेन डिब्बे- मीटर गेज वाली ट्रेनों में भूरे रंग के कोच का उपयोग होता है वैसे दो तरह की कोच वाली ट्रेनें चलती हैं एक है आइसीएफ (ICF) कोच जिसका मतलब होता है इंटीग्रल कोच फैक्ट्री जो चेन्नई में स्थित है. इनके कोच मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाए जाते हैं.

दूसरी है एलएचबी (LHB) कोच जिसका मतलब होता है Linke Hofmann Busch ये आइसीएफ कोच से अलग होती हैं. देश की सबसे तेज ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस में LHB कोच का प्रयोग किया जाता है.

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