आइये जानते है कैसे मनाएं होलाष्टक और इससे जुडी पौराणिक मान्यता..

क्‍या आप जानते हैं कि होली से 8 दिन पहले सभी शुभ कार्य रोक दिए जाते हैं और शादी-विवाह भी नहीं होते हैं। होली से पहले 8 दिन के इस समय को होलाष्‍टक के नाम से जाना जाता है

होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेंडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।


पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार यह वो अवधि होती है जब कोई भी शुभ कार्य संपन्‍न नहीं होता
पौराणिक शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है। होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
इस वर्ष होलाष्टक का प्रारंभ 21 मार्च से हो रहा है, जो 28 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक में शुभ कार्यों के करने पर पाबंदी होती है क्योंकि भक्त प्रह्लाद को इन 8 दिनों तक काफी यातना दी गई थी।

होलाष्टक का आरंभ – 21 मार्च 2021 को रविवार के दिन से होगा.
होलष्टक समाप्त होगा – 28 मार्च 2021 को रविवार के दिन होगा.

होलाष्टक का समापन होलिका दहन पर होता है. रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है. होली के त्यौहार की शुरुआत ही होलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलैण्डी तक रहती है. इस समय पर प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है.

होलाष्टक पर नहीं किए जाते हैं ये काम
होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां कुछ मुख्य कामों का प्रारम्भ होता है. वहीं कुछ कार्य ऎसे भी काम हैं जो इन आठ दिनों में बिलकुल भी नहीं किए जाते हैं. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है.

होलाष्टक के समय पर हिंदुओं में बताए गए शुभ कार्यों एवं सोलह संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाने का विधान रहा है. मान्यता है की इस दिन अगर अंतिम संस्कार भी करना हो तो उसके लिए पहले शान्ति कार्य किया जाता है. उसके उपरांत ही बाकी के काम होते हैं. संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना गया है.

इस समय पर कुछ शुभ मागंगलिक कार्य जैसे कि विवाह, सगाई, शिक्षा आरंभ संस्कार, कान छेदना, नामकरण, गृह निर्माण करना या नए अथवा पुराने घर में प्रवेश करने का विचार इस समय पर नहीं करना चाहिए. ज्योतिष अनुसार, इन आठ दिनों में शुभ मुहूर्त का अभाव होता है.

होलाष्टक की अवधि को साधना के कार्य अथवा भक्ति के लिए उपयुक्त माना गया है. इस समय पर केवल तप करना ही अच्छा कहा जाता है. ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए किया गया धर्म कर्म अत्यंत शुभ दायी होता है. इस समय पर दान और स्नान की भी परंपरा रही है.

होलाष्टक पर क्यों नहीं किए जाते शुभ मांगलिक काम

होलाष्टक पर शुभ और मांगलिक कार्यों को रोक लगा दी जाती है. इस समय पर मुहूर्त विशेष का काम रुक जाता है. इन आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता है. इस समय पर शुभता की कमी होने के कारण ही मांगलिक आयोजनों को रोक दिया जाता है.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों के राजा हिरयकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति न करने को कहा. लेकिन प्रह्लाद अपने पिता कि बात को नहीं मानते हुए श्री विष्णु भगवान की भक्ति करता रहा. इस कारण पुत्र से नाराज होकर राजा हिरयकश्यप ने प्रह्लाद को कई प्रकार से यातनाएं दी. प्रह्लाद को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक बहुत प्रकार से परेशान किया. उसे मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान किया. प्रह्लाद को मारने का भी कई बार प्रयास किया गया. प्रह्लाद की भक्ति में इतनी शक्ति थी की भगवान श्री विष्णु ने हर बार उसके प्राणों की रक्षा की.

आठवें दिन यानी की फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को जिम्मा सौंपा. होलिका को वरदान प्राप्त था की वह अग्नि में नहीं जल सकती. होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है. मगर भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त को बचा लिया. उस आग में होलिका जलकर मर गई लेकिन प्रह्लाद को अग्नि छू भी नहीं पायी. इस कारण से होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं और शुभ समय नहीं माना जाता.

होलाष्टक पर कर सकते हैं ये काम
होलाष्टक के समय पर जो मुख्य कार्य किए जाते हैं. उनमें से मुख्य हैं –
होलिका दहन के लिए लकडियों को इकट्ठा करना. होलिका पूजन करने के लिये ऎसे स्थान का चयन करना जहां होलिका दहन किया जा सके. होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को शुद्ध किया जाता है. उस स्थान पर उपले, लकडी और होली का डंडा स्थापित किया जाता है. इन काम को शुरु करने का दिन ही होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है.

शहरों में यह परंपरा अधिक दिखाई न देती हो, लेकिन ग्रामिण क्षेत्रों में आज भी स्थान-स्थान पर गांव की चौपाल इत्यादि पर ये कार्य संपन्न होता है. गांव में किसी विशेष क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर होली पूजन के स्थान को निश्चित किया जाता है. होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक रोज ही उस स्थान पर कुछ लकडियां डाली जाती हैं. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बहुत बड़ा ढेर तैयार किया जाता है.

शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के समय पर व्रत किया जा सकता है, दान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इन दिनों में सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न, धन इत्यादि का दान किया जाना अनुकूल फल देने वाला होता है l

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