भारत में वैक्सीनेशन को लेकर भारतीयों के मन में हैं कई सवाल, नीति आयोग ने दिया सबका जवाब

जानलेवा कोरोनावायरस महामारी ने भारत में परिस्थितियों को बेहद गंभीर बना दिया है. इस महामारी ने भारत के लगभग सभी तंत्रों को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है. ना ही सिर्फ भारत बल्कि कई देशों के लोगों को सबसे ज्यादा इस महामारी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

एक्सपर्ट्स द्वारा यह सलाह दी गई थी कि इस महामारी से बचने के लिए वैक्सीनेशन के प्रोग्राम को आगे बढ़ाना चाहिए. एक्सपर्ट्स की बात मानते हुए भारत में पिछले कई महीनों से वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाया जा रहा है मगर पिछले कुछ महीनों से यह देखा जा रहा है कि भारत के अनेक प्रदेशों में वैक्सीन की खेप की कमी हो रही है जिसका सीधा असर लोगों पर पड़ रहा है. ‌

वैक्सीनेशन सेंटर के बाहर घंटों लाइन लगाने के बाद लोग बिना वैक्सीन लगाए अपने घर वापस आ जा रहे हैं जिससे लोगों के बीच में गुस्सा है. लेकिन, यह देखा गया है कि भारतीयों के बीच में ऐसे कई मिथक फैल रहे हैं जिनका जवाब देना बेहद जरूरी था.

अधूरे तथ्य, आधे सच और झूठ के कारण लोगों के बीच कई मिथक फैल रहे थे. इन‌ मिथकों को सुनते हुए नीति आयोग के मेंबर और नेशनल एक्सपोर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 के चेयरमैन डॉ विनोद ने सभी मिथकों को दूर करते हुए तथ्यों को आगे रखा है. ‌यहां जानें भारत में वैक्सीनेशन प्रोसेस को लेकर फैलाए गए मिथ और फैक्ट.

पहला मिथ: – बाहरी देशों से वैक्सीन खरीदने के लिए सरकार ने नहीं उठाए पर्याप्त कदम

इस मिथक का जवाब देते हुए डॉ विनोद पॉल नहीं बताया कि पिछले साल से भारतीय सरकार इंटरनेशनल वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स से बात कर रही है. Pfizer, J&J, और Moderna जैसी वैक्सीन्स के लिए भारतीय सरकार ने कई बैठक की हैं. इन वैक्सीन के सप्लाई और मैन्युफैक्चरिंग से संबंधित सभी ऑफर भारतीय सरकार ने दिए हैं लेकिन अभी तक यह वैक्सीन फ्री सप्लाई के लिए मौजूद नहीं हैं. इंटरनेशनल लेवल पर इन वैक्सीन को खरीदना आसान कार्य नहीं है लेकिन भारतीय सरकार सारी कोशिशें कर रही है. डॉ पॉल ने बताया कि यह वैक्सीन ग्लोबल सप्लाई के लिए लिमिटेड हैं और इन वैक्सीन को बनाने वाली कंपनियों के पास अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं. जैसे ही Pfizer सप्लाई के लिए मौजूद होगा वैसे ही भारतीय सरकार इसे इंपोर्ट करने की कोशिश करेगी. फिलहाल रूस की Sputnik वैक्सीन के ट्रायल को आगे बढ़ाया जा रहा है और अभी तक इस वैक्सीन के दो ट्रैंच्स को भेजा गया है. अभी भारत में Sputnik वैक्सीन के मैन्युफैक्चरिंग को शुरू किया जाएगा. भारतीय सरकार इंटरनेशनल वैक्सीन मेकर्स को भारत में भारत के साथ विश्व के लिए भी वैक्सीन बनाने के लिए आमंत्रित कर रही है.

दूसरा मिथ: – वैश्विक स्तर पर मौजूद वैक्सीन को नहीं मिली भारतीय सरकार की मंजूरी

डॉ पॉल ने बताया कि इस वर्ष अप्रैल के महीने में भारतीय सरकार ने यूएस एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए, जापान के पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ के द्वारा इमरजेंसी यूज के लिए मंजूर की गई वैक्सीन को भारत में लाने के लिए मंजूरी दे दी थी. इन वैक्सीन को आगे ट्रायल्स के लिए जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह प्रावधान अन्य देशों में बनी वैक्सीन के लिए भी लागू किया गया है. फॉरेन मैन्युफैक्चरर द्वारा वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए भेजे गए एक भी एप्लीकेशन ड्रग्स कंट्रोलर के पास पेंडिंग नहीं है.

तीसरा मिथ: – भारत में वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार कोई पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है

डॉ पॉल ने बताया कि भारतीय सरकार पिछले साल से भारत के अंदर वैक्सीन बनाने के लिए कंपनीज को हर एक सुविधा मुहैया करवा रही है. भारत की भारत बायोटेक सिर्फ एक ही ऐसी कंपनी है जिसके पास आईपी मौजूद है. भारतीय सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि तीन अन्य कंपनियां Covaxin का उत्पादन करेंगे, इसके साथ उन्होंने भारत बायोटेक के प्लांट को भी 1 से 4 कर दिया है. भारत बायोटेक द्वारा बनाई जा रही Covaxin के उत्पादन को अक्टूबर के महीने में एक करोड़ प्रतिमाह से 10 करोड़ प्रतिमाह कर दिया गया है. इसके साथ 3 PSUs भी दिसंबर के महीने से करीब चार करोड़ डोसेज का उत्पादन करेंगी. भारतीय सरकार के प्रोत्साहन के वजह से सिरम इंस्टीट्यूट भी अब वैक्सीन के उत्पादन को 6.5 करोड़ प्रतिमाह से 11.0 करोड़ प्रतिमाह बढ़ाने की तैयारी कर रही है.‌ भारतीय सरकार यह सुनिश्चित रूस की Sputnik वैक्सीन का उत्पादन भारत में डॉक्टर रेडी के कोआर्डिनेशन में छह कंपनियां करें. भारतीय सरकार Zydus Cadila, BioE और Gennova द्वारा कोविड रक्षा के अंतर्गत किए जा रहे मदद को‌ भी सहयोग कर रही है. भारत बायोटेक के सिंगल डोज इंट्रानसल वैक्सीन को भारतीय सरकार फंड दे रही है. डॉ पॉल ने बताया कि वर्ष 2021 के अंत तक करीब 200 करोड़ दो जज का उत्पादन किया जाएगा.

चौथा मिथ: – भारत की केंद्र सरकार को लागू करना चाहिए अनिवार्य लाइसेंसिंग

डॉ पॉल ने बताया कि अनिवार्य लाइसेंसिंग एक सही सुझाव नहीं है क्योंकि फार्मूला महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि पार्टनरशिप, ह्यूमन रिसोर्सेज की ट्रेनिंग, फ्रॉम मैटेरियल्स की‌ सोर्सिंग और उच्च स्तर वाले बायो-सेफ्टी लैब्स महत्वपूर्ण हैं. पैक ट्रांसफर उन कंपनियों के हाथ में है जिन्होंने आर एंड डी किया है. अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक और तीन अन्य कंपनियां Covaxin के उत्पादन में आ गया है. ऐसा ही मैकेनिज्म Sputnik के लिए भी लागू किया गया है. Moderna उदाहरण देते हुए डॉ पॉल ने कहा कि वर्ष 2020 में अक्टूबर के महीने में Moderna ने कहा था कि अगर कोई कंपनी उसके वैक्सीन बनाएगी तो वह‌ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करेंगे. लेकिन अब तक किसी कंपनी ने ऐसा नहीं किया है इसका मतलब यह है कि लाइसेंसिंग कोई बड़ी बात नहीं है.

पांचवा मिथ: – केंद्र सरकार ने राज्यों पर जिम्मेदारी सौंपकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है

डॉ पॉल ने बताया कि केंद्र सरकार के ऊपर वैक्सीन के लिए फंड देने से लेकर उनके उत्पादन को बढ़ाने तक काफी जिम्मेदारियां हैं. सरकार यह कोशिश कर रही है कि खरीदी गई वैक्सीन को हर एक राज्यों के लोगों तक फ्री में पहुंचाया जाए. यह सब बातें राज्यों को भली-भांति पता है. इसके साथ केंद्र सरकार यह कोशिश कर रही है कि राज्य सरकार अब स्वयं वैक्सीन खरीद सकें. राज्यों को यह पता है कि वैक्सीन के उत्पादन में और अन्य देशों से वैक्सीन के खरीद में कितनी दिक्कतें आ रही हैं. केंद्र सरकार यह कोशिश कर रही है कि जिन राज्यों में प्ले 3 महीने से हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स की कमी है वहां वैक्सीनेशन के प्रोसेस को आगे बढ़ाया जाए. सरकार यह कोशिश कर रही है कि वैक्सीनेशन के मामले में राज्य सरकारों की ताकतों को बढ़ाया जाए क्योंकि स्वास्थ्य एक स्टेट सब्जेक्ट भी है.

छठा मिथ: – केंद्र सरकार राज्य सरकारों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन मुहैया नहीं करवा रही है

डॉ पॉल ने बताया कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को उचित दिशा-निर्देशों और पूर्ण पारदर्शिता के साथ वैक्सीन उपलब्ध करा रही है, उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले महीनों में उन्हें निर्माताओं से और वैक्सीन मिल जाएगी. केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ-साथ निजी अस्पतालों को भी 25% – 25% के अनुपात में टीके दे रही है. केंद्र सरकार ने कड़े शब्दों में कहा कि कुछ राजनेता वैक्सीन की अनुपलब्धता को लेकर पैनिक पैदा कर रहे हैं. सरकार का कहना है कि राजनेताओं को इस काल‌ में राजनीति नहीं करनी चाहिए और कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में एकजुट रहना चाहिए.

सातवां मिथ: – केंद्र सरकार बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम के लिए आगे नहीं आ रही है

18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टीकाकरण और टीके की उपलब्धता के संबंध में बहुत सारे सवाल उठाए गए थे सरकार ने स्पष्ट किया कि छोटे बच्चों के टीकाकरण के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि बच्चों के लिए टीका सुरक्षित है और भारत में बच्चों पर टीके का परीक्षण जल्द ही शुरू होगा. सरकार ने कड़े शब्दों में कहा कि व्हाट्सएप सूचनाओं के दबाव में बच्चों का टीकाकरण शुरू नहीं होगा. सरकार का कहना है कि बच्चों का टीकाकरण तभी शुरू होगा जब वैज्ञानिक वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर अपनी मंजूरी देंगे.

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