न्याय के देवता गोल्ज्यू, बाल मिठाई और विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं हैं अल्मोड़ा की पहचान

अल्मोड़ा को कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है और उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में इसकी गिनती होती है. अल्मोड़ा को लोग न्याय के देवता चितई गोल्ज्यू देवता के लिए भी जानते हैं और और यहां की मशहूर बाल मिठाई के लिए भी. अल्मोड़ा को उत्तराखंड के सबसे पढ़े-लिखे लोगों का घर भी माना जाता है और उत्तराखंड के बहुत से मशहूर साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी इसी मिट्टी में पैदा हुए, पले-बढ़े हैं. चंद राजाओं से अंग्रेज़ों से संघर्ष करते स्वसंत्रता सेनानियों को भी इस शहर ने बनते-बिगड़ते देखा है. कभी नौलों का शहर कहे जाने अल्मोड़ा ने अपनी सैकड़ों बरस की यात्रा में बहुत कुछ बदलते भी देखा है.

इतिहास
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की स्थापना 1568 में राजा बालो कल्याण चंद ने की थी. चंद राजाओं का शासन काल खत्म हुआ 1790 में जब गोरखाओं ने अल्मोड़ा पर अपना कब्ज़ा कर लिया. इसके बाद 1815 में अंग्रेजों ने अपनी कमिश्नरी ही अल्मोड़ा के मल्ला महल में स्थापित कर दी. पहले मल्ला महल और तल्ला महल राजाओं के महल होते थे. आज भी अल्मोड़ा की प्रशासनिक इकाइ कलेक्ट्रेट इसी मल्ला महल में स्थित है.

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1872 में अंग्रेजों द्वारा की गई थी. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, विक्टर मोहन जोशी, गोविन्द बल्लभ पंत, हरगोविन्द पंत, देवी दत्त पंत, आचार्य नरेन्द्र दे,. बद्री दत्त पाण्डेय, खान अब्दुल गफ्फार खान, सैय्याद अली ज़हीर, दुर्गा सिंह रावत सहित 423 लोग अगस्त क्रांति में अल्मोड़ा जेल में बंद रहे. जेल से ही आंदोलनकारियों ने आज़ादी की लडाई की रणनीति बनाईं.

न्याय के देवता गोल्ज्यू
देवभूमि उत्तराखंड में अल्मोड़ा शहर से 6 किलोमीटर दूर न्याय के देवता चितई गोल्ज्यू देवता का मंदिर है. इस अनोखे मिर में लाखों की संख्या में घंटियां और भगवान को मानन्त मांगी गई मन्न्त की अर्ज़ियां हैं. माना जाता है कि जिस व्यक्ति को किसी भी न्यायालय से न्याय नहीं मिलता है, वह अपनी अर्जी चितई के गोलू देवता मंदिर में लगाता है. उसे यहां से न्याय ज़रूर मिलता है.

अल्मोड़ा से 9 किलोमीटर दूर कसादेवी मंदिर है. यह क्षेत्र अपनी चुम्बकीय शक्ति के लिए प्रसिद्ध है. स्वामी विवेकाननेद 1890 के दशक में कसारदेवी आए थे और अब हर साल हज़ारों की संख्या में विदेशी यहां योग और साधना के लिए आते है. इससे स्थानीय लोगों को भी रोज़गार मिला है और कई ने यहां होटल, रिज़ॉर्ट और होमस्टे बना लिए हैं.

मोहन उप्रेती और शिवानी की जन्मभूमि
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से ही देश दुनिया में कई लोगों ने अपना नाम रोशन किया है. माना जाता है कि उत्तराखंड में सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग किसी शहर के हैं तो वह है अल्मोड़ा. पाकिस्तान की प्रथम महिला आयरीन पंत का जन्म अल्मोड़ा में ही हुआ था जिन्होंने पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने लियाकत अल्ली खान से शादी की थी.

उत्तराखंड का अघोषित राज्य गीत माना जाने वाले, ‘बेड़ू पाको बारमासा’ गीत के रचयिता मोहन उप्रेती भी अल्मोड़ा में ही जन्मे थे. मशहूर साहित्यकार शिवानी और उनकी बेटी वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे भी अल्मोड़ा से ही हैं.

दशहरा और बाल मिठाई
अल्मोड़ा का दशहरा देश के प्रसिद्ध दशहरों में से एक है. यहां रावण परिवार के दो दर्जन से अधिक पुतले बनाए जाते हैं. इन पुतलों को पूरे बाज़ार में घुमाने के बाद ही स्टेडियम में इनका दहन किया जाता है. इससे पहले दर्जन भर स्थानों पर रामलीलाओं का मंचन भी किया जाता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे.

संस्कृति के साथ ही अल्मोड़ा अपने स्वाद के लिए भी मशहूर है. यहां की बाल मिठाई, सिंगौड़ी, चौकलेट और खेचुवा की मांग देश में ही नहीं विदेश में भी होती है. अल्मोड़ा दौरे में भाजपा हो या कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी यहां की बाल मिठाई का नाम लेना नहीं भूलते है. लोग अपने रिश्तेदारों के यहां अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई भेजते हैं.

बदलाव और पलायन
एक समय ऐसा था जब अल्मोड़ा में पीने के लिए प्राकृतिक जलस्रोतों का ही इस्तेमाल होता था. इन्हें नौले कहते हैं 365 नौलों वाले अल्मोड़ा को नौलों का शहर भी कहते थे. आज भी दर्जनों नौलों को जागरुक लोगों ने जीवित रखा है जिसमें से लोग पेयजल किल्लत के समय पीने का पानी लिया जाता है वरना ज़्यादातर नौले अतिक्रमण और अनियोजित निर्माण की भेंट चढ़ गए हैं.

अल्मोड़ा कुमाऊं का सबसे ज़्यादा पलायन वाला शहर भी है. हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि पलायन की वजह से अल्मोड़ा के निवासी देश और विदेश में अपने शहर, ज़िले और प्रदेश का नाम कोशन कर पाए. अल्मोड़ा के लोग देश के हर कोने के साथ ही अमेरिका, कनाड़ा सहित आधे दर्जन देशों में अपना कारोबार कर रहे हैं.

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