Explainer: जानें क्या हैं डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, क्यों माने जा रहे हैं इकोनॉमी के पावर बूस्टर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देश को एक और सौगात दी है. पीएम मोदी ने ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के खुर्जा-भाऊपुर सेक्शन का उद्घाटन किया. आखिर क्या हैं ये डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC), क्यों माने जा रहे हैं इकोनॉमी के पावर बूस्टर, कब हुई शुरुआत? आइए इसको विस्तार से जानते हैं…

इनके निर्माण से रेलवे देश में माल ढुलाई के क्षेत्र में आमूल बदलाव की तैयारी कर रहा है. ये देश में इकोनॉमी के पहिये को भी तेज करेंगे . इससे कुल 10,222 किमी लंबा नया रूट तैयार होगा, जो रेलवे के कुल रूट का 16 फीसदी हिस्सा होगा. 

सबसे पहले बात भाऊपुर-खुर्जा सेक्शन की 

करीब 351 किलोमीटर लंबा भाऊपुर-खुर्जा सेक्शन 5750 करोड़ की लागत से बनाया गया है. इसके जरिए उत्तर प्रदेश के एल्युमिनियम, शीशा, ताला समेत कई स्थानीय उद्योगों को फायदा मिलेगा. डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनने से कानपुर-दिल्ली मेन लाइन पर ट्रैफिक भी काफी कम होगा.

कैसे ​बना विचार 

जिस तरह से देश के सभी कोनों को जोड़ने के लिए राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज (गोल्डेन ट्राईएंगल) का निर्माण किया गया, उसी तरह पूरे देश को सिर्फ माल ढुलाई के लिए समर्पित रेलवे लाइन से जोड़ने के लिए रेलवे द्वारा भी स्वर्णिम चतुर्भुज और दो डायगोनल का निर्माण किये जाने का प्रस्ताव रखा गया. साल 2005 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट का ऐलान किया. 

स्वर्णिम चतुर्भुज लिंकिंग के द्वारा दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हावड़ा को जोड़ा जा रहा है, जबकि डायगोनल्स के द्वारा दिल्ली-चेन्नई और मुंबई-हावड़ा को जोड़ा जा रहा है. डेडिकेटेड का मतलब यह है कि यह नया रेलमार्ग होगा, जो सिर्फ मालगाड़ियों के लिए समर्पित होगा यानी इस पर सिर्फ मालगाड़ियां चलेंगी. 

डेडिकेटेड कॉरिडोर की जरूरत क्यों 

गौरतलब है कि आजादी के बाद 1950-51 में कुल माल ढुलाई में रेलवे का हिस्सा 83 फीसदी था, लेकिन 2011-12 तक यह घटकर 35 फीसदी तक आ गया. दूसरी तरफ देश में कुल सड़क जाल का महज आधा फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले नेशनल हाईवे के द्वारा कुल सड़क माल ढुलाई का 40 फीसदी हिस्सा जाता है. इसकी वजह से रेलवे में माल ढुलाई बढ़ाने के प्रयास के तहत यह बड़ा कदम उठाया गया. 

देश में बु​नियादी ढांचे विकास पर अगले वर्षों में भारी निवेश की योजना है, उद्योगों का तेज विकास हो रहा है, बिजली की बढ़ती जरूरतों के लिए कोयले की ढुलाई लगातार बढ़ती जा रही है, इन सब वजहों से माल ढुलाई के लिए अलग से ऐसे लाइन के विकास की जरूरत महसूस हुई जिन पर सिर्फ मालगाड़ियां चलें ताकि किसी तरह का डिस्टर्बेंस न हो और माल तेजी से देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच सके. 

क्या होगा फायदा 

इस प्रोजेक्ट से बंदरगाहों, निर्यातकों, आयातकों, शिपिंग लाइन, कंटेनर ऑपरेटर आदि को काफी फायदा होगा. वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के समानांतर ही दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है. हमने यह देखा है कि देश में हाईवे के निर्माण से इकोनॉमी को स्पीड मिली है, उसी तरह से यह कॉरिडोर इकोनॉमी को और तेज गति देगा. 

यह हाईस्पीड कॉरिडोर है जिसमें मालगाड़ियों की औसत गति 75 किमी प्रति घंटा से बढ़कर 100 किमी प्रति घंटा तक हो जाएगी. यानी इससे माल की आवाजाही तेज होगी, जिससे कारोबारी गतिविधियां भी तेज होंगी और अर्थव्यवस्था की स्पीड बढ़ेगी. 

भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार मोबाइल रेडियो कम्युनिकेशन और GSM आधारित ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल होगा, यानी इससे मालगाड़ियों की ट्रैकिंग भी की जाएगी. 

इस कॉरिडोर से बड़े पैमाने पर ट्रांसपोर्ट सेक्टर से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा, क्योंकि माल ढुलाई वाले वाहन की जरूरत कम होगी. Ernst & Young के एक अनुमान के अनुसार डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से पहले 30 साल में ही करीब 45 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा. 

कहां से आएगा पैसा 

ईस्ट और वेस्ट कॉरिडोर के निर्माण पर करीब 81,459 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. DFCCIL ने इस कॉरिडोर के निर्माण के लिए ​वर्ल्ड बैंक, JICA जैसी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से गठजोड़ किया है. इस कॉरिडोर के कई सेक्शन में टाटा-ALDESA के जॉइंट वेंचर, L&T-Sozits के कंसोर्टियम को भी ठेका मिला है. इसके निर्माण पर प्रति किमी करीब 18 करोड़ रुपये खर्च होंगे. 

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