विशेष: नेतृत्व संकट के साथ अब कांग्रेस पार्टी पैसों की किल्लत से भी जूझ रही

आज बात करेंगे कांग्रेस पार्टी की. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पिछले काफी समय से अपने नेतृत्व को लेकर सुर्खियों में है. आए दिन पार्टी के नेताओं का असंतोष बाहर आ जाता है. गांधी परिवार अभी तक पार्टी के नेताओं के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा है. अब कांग्रेस में एक और नया ‘आर्थिक संकट’ गहरा गया है.

पार्टी अब फंडिंग यानी पैसों की किल्लत से जूझ रही. बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले आपको बता दें कि यह फंडिंग (चंदा) होता क्या है, और सभी राजनीतिक दल पार्टी फंड लेने में प्राथमिकता क्यों देते हैं ? पार्टी के कामों को चलाने के लिए हर वर्ष राजनीतिक दल चंदा इकट्टठा करते हैं, इसी चंदे की राशि से चुनाव समेत अन्य खर्चों को निपटाया जाता है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि फंडिंग एक राजनीतिक दल के लिए अहम बिंदुओं में से एक है. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि पार्टी को मिलने वाला चंदा हमेशा सवालों के घेरे में रहा. कई राजनीतिक दल निर्वाचन आयोग को अपनी चंदे की वास्तविक स्थिति का भी हलफनामा देने में आनाकानी करते रहे हैं. फंडिंग को लेकर मामला कई बार सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा है.

अब बात शुरू करते हैं कांग्रेस की लड़खड़ाती आर्थिक स्थिति पर. वर्ष 2014 से केंद्र में मोदी सरकार का कब्जा हुआ तभी से कांग्रेस बिखरती चली गई. एक समय पार्टी के पास देश का सबसे बड़ा औद्योगिक घराना साथ हुआ करता था. लेकिन पिछले 6 वर्षों से अधिकांश इंडस्ट्रीज के मुखिया भाजपा सरकार के साथ आ खड़े हुए.

मौजूदा समय में भाजपा सबसे ज्यादा मालामाल पार्टी है. पिछले दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की हुई बैठक में पार्टी को चलाने के लिए नेताओं के बीच फंडिंग को लेकर लंबी मंत्रणा हुई. इस बैठक में कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने साफ तौर पर कहा कि पार्टी को चलाने के लिए फंड की बहुत जरूरत है.

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस रणनीतिकार पैसे जुटाने में जुटे
बता दें कि कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी चिंता पांच राज्यों केरल, असम, बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर है. कांग्रेस आलाकमान का कहना है कि इन राज्यों में चुनाव अच्छे से लड़ना है तो पैसों का इंतजाम तो करना ही होगा.

पार्टी की वित्तीय हालत सुधारने के लिए कांग्रेस को अपने शासित राज्यों की आस है, इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों इन राज्यों से धन जुटाने के लिए आग्रह किया गया. बता दें कि छत्तीसगढ़, राजस्थान और पंजाब में ही पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकारें हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र और झारखंड में वह सत्ता में नाममात्र की साझीदार होने से उसे मदद की कोई आस नहीं है. ऐसे ही पुडुचेरी में भी सत्तारूढ़ कांग्रेस अल्पमत में है.

कांग्रेस रणनीतिकार पार्टी की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब की सरकारों की ओर टकटकी लगाए हैं. फंडिंग की स्थिति देखी जाए तो भारतीय जनता पार्टी टॉप पर है. उसे कुल 742.15 करोड़ का चंदा मिला, जबकि कांग्रेस को 148.58 करोड़ रुपये ही मिल सके. यह भी सच है कि आमतौर पर उसी पार्टी को ज्‍यादा चंदा मिलता है, जो सत्‍ता में होती है.

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में कांग्रेस आर्थिक सहयोग इकट्ठा करने के लिए प्रतिनिधि नियुक्त करने की योजना पर काम कर रही है. इस आर्थिक संकट की वजह से पार्टी के सांसद और विधायक भी काफी दबाव में हैं. वहीं दूसरी ओर राजधानी दिल्ली में कांग्रेस का निर्माणाधीन नया मुख्यालय भी वित्तीय हालत खराब होने की वजह से अधर में है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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