41 साल की हुई भाजपा: भगवा एजेंडा-राम मंदिर मुद्दे और राष्ट्रवाद की ‘राज नीति’ से सत्ता के शिखर पर पहुंची भाजपा

आज 6 अप्रैल है. इस तारीख को भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ था. आज बीजेपी को लेकर चर्चा करेंगे. इस राजनीतिक दल की शुरुआत कैसे हुई, किन के द्वारा और अब कहां पर विराजमान है, आदि मुद्दों पर विस्तार से जानेंगे. जब इस पार्टी की नींव रखी जा रही थी तब सोचा नहीं होगा कि आने वाले समय में यह देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन जाएगा.

आज भाजपा 41 साल की हो गई है. इस पार्टी का इतिहास और विचारधारा जानने के लिए चार दशक पीछे लिए चलते हैं. यहां हम आपको बता दें कि 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की गई थी.तब इस पार्टी के लिए सत्ता पाना बहुत ही मुश्किल कार्य था.उस समय देश में ‘कांग्रेस का एकछत्र राज’ हुआ करता था.लेकिन भाजपा ने धीरे-धीरे देश में अपना विस्तार शुरू कर दिया.

पार्टी को देश भर में पहुंचाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी ने शुरुआत की थी.पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. वर्तमान समय में जेपी नड्डा पार्टी के प्रमुख हैं.बीजेपी ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में 2 लोकसभा सीट जीतकर की थी और पार्टी लगातार दूसरी बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत पाकर केंद्र की सरकार चला रही है.

शुरू में भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में मुख्य रूप से ‘भगवाकरण’ का आगाज हुआ था.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों से प्रेरणा लेकर पार्टी देशभर में धीरे-धीरे अपना सिक्का जमाती चली गई.’अयोध्या के राम जन्मभूमि का मुद्दा लेकर देश के शीर्ष स्थान पर पहुंची भाजपा को आज राष्ट्रवाद की राजनीति रास आने लगी है’. इस पार्टी ने एक से बढ़कर एक नेता दिए जिन्होंने देश ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपने शिखर पुरुष होने का डंका बजाया.

41 साल के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी संघर्ष के दौर से निकल कर सत्ता के शिखर पर है.भारतीय जनता पार्टी तो 1980 में बनी, लेकिन इससे पहले ही 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय जनसंघ बनाया था. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण अडवाणी से होते हुए आज पार्टी नरेंद्र मोदी की अगुवाई तक पहुंच गई है.

अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दल को भारतीय जनता पार्टी का नाम दिया था

देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में ‘मेरा देश मेरा जीवन’ में पार्टी के झंडे से लेकर नाम तक के बारे में जानकारी दी. आडवाणी ने बताया कि शुरू से ही पार्टी का जोर जनसंघ पर वापस लौटने का नहीं बल्कि एक नई शुरुआत करने का था.

पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों ने नई पार्टी के नाम पर गहन विचार-विमर्श किया. कुछ लोग इसे भारतीय जनसंघ का नाम देना चाहते थे.पर बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के दिए गए नाम ‘भारतीय जनता पार्टी’ को भारी समर्थन मिला. इसके साथ ही हम नई पहचान के साथ एक नई पार्टी के रूप में सामने आए.

आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि पार्टी जब नई बनी तो एक नया चिह्न और झंडा को भी अपनाया गया.जनसंघ के ‘दीये’ की जगह ‘कमल’ ने लिया. नया झंडा कुछ-कुछ जनता पार्टी से मिलता था.इसका एक तिहाई हिस्सा हरा और दो तिहाई केसरिया था, जिसमें फूल बना था.

बाद में कमल बीजेपी का चुनाव चिह्न भी बन गया. पूर्व गृहमंत्री आडवाणी ने अपनी पुस्तक में लिखा कि जनता पार्टी से अलग होने के बाद हमने अपनी पहचान बना ली थी, इसलिए जरूरी था कि हम मतदाताओं के पास जनता पार्टी के हलधर किसान से अलग चुनाव-चिह्न के साथ जाएं. इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी का झंडे और नामकरण हुआ था.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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