तालिबान के शीर्ष कमांडरों में शामिल स्‍टानिकजई का आईएमए देहरादून से भी है नाता, जानिए कैसे

देहरादून| अफगानिस्तान में अब ‘तालिबान राज’ है और आम अफगान नागिरक बिल्कुल सहमे हुए से हैं. अफगानिस्तान में तालिबान की टॉप लीडरशीप सत्ता पर काबिज हो गई है और शरिया कानून लागू करने का ऐलान हो चुकेा है.

तालिबान के टॉप 7 नेताओं में से शेर मोहम्‍मद अब्‍बास स्‍टानिकजई (60) का मोहम्‍मद अब्‍बास स्‍टानिकजई कभी देहरादून की इंडियन मिलिटरी अकैडमी (आईएमए), देहरादून से भी नाता है जो कभी आईएमए का जेंटलमैन कैडेट हुआ करता था और उसके बैचमेट्स उसे शेरू के नाम से बुलाते थे.

जैंटलमैन कैडेट
स्टैनिकजई उर्फ शेरू जब आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी के 45 जेंटलमैन कैडेटों में से एक था, तब उसकी उम्र 20 साल की थी. शेरू के बैचमेट्स रहे परम विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) ने एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए कहा हैं, ‘वह एक मजबूत कद काठी का आदमी था जो अकादमी के अन्य कैडेटों की तुलना में थोड़ा बड़ा लगता था. उसने रौबदार मूंछें रखीं थी. उस समय वह निश्चित रूप से कोई कट्टरपंथी विचार से घिरा नहीं था. वह एक औसत अफगान कैडेट था जो यहां अपने समय का आनंद ले रहा था.

ऐसे पहुंचा था आईएमए
दरअसल में आईएमए में आजादी के बाद से विदेशी कैडेटों को प्रवेश मिलता रहा है और और भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1971 से अफगान कैडेटों को यह सुविधा मिलती रही थी. स्टैनिकज़ई अफ़ग़ान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों से सीधी भर्ती के जरिए आईएमए पहुंचा था.

रिटायर्ड कर्नल केसर सिंह शेखावत ने बताया, ‘वह एक बच्चे की तरह था. मुझे याद है कि एक बार हम ऋषिकेश गए थे और गंगा में स्नान किया था. उस दिन की एक तस्वीर है जिसमें शेरू को मेरे साथ आईएमए स्विमिंग ट्रंक में देखा जा सकता है. वह बहुत मिलनसार था. हम वीकेंड पर जंगलों और पहाड़ियों में घूमने जाया करने थे.’

आईएमए में डेढ़ साल में उसने प्री कमिशन ट्रेनिंग पूरी की. इसके बाद वह अफगान नेशनल आर्मी में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुआ. इसके कुछ समय बाद ही सोवियत रूस ने अफगानिस्‍तान पर कब्‍जा किया था. 1996 तक, स्टैनिकजई ने सेना छोड़ दी थी, तालिबान में शामिल हो गया. वह अमेरिका द्वारा तालिबान को राजनयिक मान्यता देने के लिए क्लिंटन प्रशासन के साथ बातचीत में शामिल रहा.

भारत में सीखी अंग्रेजी
1997 के एक ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के लेख में कहा गया है कि तालिबान शासन के “कार्यवाहक विदेश मंत्री” स्टैनिकजई ने भारतीय कॉलेज में अंग्रेजी सीखी थी. बाद के वर्षों में, वह तालिबान के प्रमुख वार्ताकारों में से एक बन गया. उसकी शानदार अंग्रेजी और सैन्य प्रशिक्षण की बदौलत वह तालिबान की टॉप लीडरशीप में शामिल हो गया. जब तालिबान ने दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय स्थापित किया तो वहां तालिबान ने अपने वरिष्ठ नेताओं को वहां तैनात किया. साल 2012 से स्‍टानिकजई तालिबान का प्रतिनिधित्‍व करता रहा.

विदेश मंत्रालय के पास मौका!
अब बदले हालात में स्‍टानिकजई के दोस्‍तों का सुझाव है कि तालिबान के साथ बातचीत में वह यानि शेरू एक अहम कड़ी साबित हो सकता है. रिटायर्ड मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी क‍हते हैं, ‘यकीनन उसके मन में भारत की सुखद यादें होंगी. मेरे विचार में विदेश मंत्रालय के पास एक मौका है कि वह आईएमए के दिनों के उसके दोस्‍तों के नेटवर्क के जरिए उससे संपर्क स्थापित कर तालिबान के साथ बातचीत की शुरुआत कर सकता है.’

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