ज्ञानवापी मामला: हिन्दू पक्ष पहुंचा इलाहाबाद हाईकोर्ट, कैव‍िएट दाख‍िल कर की ये मांग

यूपी में वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी शृंगार गौरी मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह देवी-देवताओं की दैनिक पूजा के अधिकार के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी, जिनके विग्रह ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं.

इस फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैविएट अर्जी की है, ताकि मामले में एकपक्षीय आदेश कोर्ट जारी न किया जाए. अगर मस्जिद समिति द्वारा वाराणसी अदालत के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करेगी तो हाईकोर्ट कैविएट दाखिल होने की स्थिति में बिना हिन्दू पक्ष को सुने आदेश नहीं देगा.

आपको बता दें क‍ि जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाया गया था. मुस्लिम पक्ष ने अदालत के इस फैसले को उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है.

इसके साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सोमवार को अगली सुनवाई की तारीख 28 सितंबर, 2022 निर्धारित की.

हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया कि जिला न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने मामले की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुनवाई जारी रखने का निर्णय किया. अदालत में मौजूद एक वकील ने बताया कि जिला न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वादियों और उनके अधिवक्‍ताओं समेत 32 लोगों की मौजूदगी में 26 पन्‍नों का आदेश 10 मिनट के अंदर पढ़कर सुनाया.

अदालत ने गत 24 अगस्‍त को इस मामले में अपना आदेश 12 सितंबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि जिला अदालत के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

उल्लेखनीय है कि इस मामले में पांच महिलाओं ने याचिका दायर कर हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगी थी, जिनके विग्रह ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं. अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ संपत्ति बताते हुए कहा था कि मामला सुनवाई योग्य नहीं है। मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी.

जिला न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा क‍ि दलीलों और विश्‍लेषण के मद्देनजर मैं इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मामला उपासना स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, वक्‍फ अधिनियम, 1995 और उप्र श्री काशी विश्‍वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 तथा बचाव पक्ष संख्‍या 4 (अंजुमन इंतजामिया) द्वारा दाखिल याचिका 35 सी के तहत वर्जित नहीं है, लिहाजा इसे निरस्‍त किया जाता है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को मामले की जटिलता के मद्देनजर वाराणसी के सिविल न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत से जिला न्यायाधीश, वाराणसी की अदालत में हस्तांतरित कर दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि अच्छा होगा यदि इस मामले की सुनवाई 25-30 वर्ष का अनुभव रखने वाले किसी वरिष्‍ठ न्यायाधीश से कराई जाए.

न्‍यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्‍यायमूर्ति सूर्य कांत और न्‍यायमूर्ति पी एस नरसिम्‍हा की पीठ ने कहा था कि वह सिविल जज की योग्‍यता को कमतर नहीं आंक रही है, मगर इस मामले की पेचीदगी को देखते हुए यह बेहतर है कि कोई वरिष्‍ठ न्‍यायिक अधिकारी इस मामले की सुनवाई करे. इसके बाद इस मामले को जिला न्‍यायाधीश ए के विश्‍वेश की अदालत में स्‍थानांतरित कर दिया गया था.

















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