बिल्डर वसूली मामले में गैंगस्टर अरुण गवली बरी, साक्ष्यों के अभाव में राहत

मुंबई की एक खास MCOCA अदालत ने 2005 के बिल्डर वसूली मामले में गैंगस्टर अरुण गवली और छह अन्य को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि पीड़ित की गवाही भरोसेमंद नहीं थी और ना ही वह भरोसे के लायक थी. गवली पहले से ही शिवसेना के नगरसेवक कमलाकर जामसंडेकर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है. अब उसके खिलाफ कोई अन्य लंबित केस नहीं बचा है.

कोर्ट ने जांच में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया. जज ने कहा कि जांच अधिकारियों ने एक आरोपी को फायदा पहुंचाया, जो बाद में सरकारी गवाह बन गया. कॉल डाटा रिकॉर्ड, सीसीटीवी फुटेज और अहम गवाहों के बयान तक दर्ज नहीं किए गए. कोर्ट ने साफ कहा कि इस तरह की जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

2005 में एक बिल्डर ने आरोप लगाया था कि गवली के गिरोह ने दादर में एक रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए 50 लाख रुपये की मांग की थी. लेकिन अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि वास्तव में बिल्डर से 8 लाख की वसूली हुई थी. यहां तक कि 2007 में जब बिल्डर ने दूसरा प्रोजेक्ट शुरू किया, तब भी दोबारा वसूली की कोशिश के आरोप कमजोर साबित हुए.

जज ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि अगर बिल्डर ने वाकई गवली के भाई विजय उर्फ भाऊ गुलाब आहिर से मुलाकात की थी और पैसे की बातचीत की थी, तो वह उन्हें पहचानने में असफल कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक व्यवहार नहीं है और इससे संदेह पैदा होता है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि बिल्डर एफआईआर दर्ज कराने से पहले ही क्राइम ब्रांच के संपर्क में था और उसे पता था कि उसकी फोन कॉल्स की निगरानी हो रही है. ऐसे में यदि उसे वाकई धमकी मिली होती, तो वह चुप नहीं बैठता. यह व्यवहार भी संदिग्ध माना गया.

अदालत ने माना कि गवाहों के बयान और परिस्थितिजन्य सबूत इतने मजबूत नहीं थे कि यह साबित किया जा सके कि आरोपियों ने मिलकर वसूली या धमकी देने की कोई साजिश रची थी.

अरुण गवली की पेशी कोल्हापुर जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए हुई. पूरे मुकदमे के दौरान कुल 29 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. लेकिन अंत में अदालत ने सबूतों की कमी के चलते सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

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