पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाले के मुख्य आरोपी मेहुल चोकसी को बेल्जियम में गिरफ्तार कर लिया गया है। भारत सरकार अब 2020 में बेल्जियम के साथ हस्ताक्षरित प्रत्यर्पण संधि का उपयोग करके उसे भारत लाने का प्रयास कर रही है।
यह संधि 1901 में ब्रिटेन और बेल्जियम के बीच हुई संधि की जगह लेती है, जिसे भारत में 1958 तक लागू किया गया था। नई संधि के तहत, दोनों देश एक-दूसरे को ऐसे अपराधियों को सौंपने के लिए सहमत हैं, जिन पर किसी अपराध को लेकर आरोप है।
हालांकि, प्रत्यर्पण तभी संभव है जब अपराध दोनों देशों के कानूनों में दंडनीय हो। इसके अलावा, यदि अपराध राजनीतिक या सैन्य प्रकृति का हो, या यदि आरोपी को उसके धर्म, जाति, लिंग या राजनीतिक विचारों के कारण मुकदमा चलाया जा रहा हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
चोकसी के वकील ने उसकी गिरफ्तारी का विरोध करते हुए इसे राजनीतिक मामला बताया है और कहा है कि भारत में उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। इसके अलावा, उन्होंने चोकसी की स्वास्थ्य स्थिति का हवाला देते हुए प्रत्यर्पण के खिलाफ अपील करने की योजना बनाई है।
भारत सरकार और जांच एजेंसियां चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है और इसमें कई कानूनी चुनौतियां आ सकती हैं।
यदि प्रत्यर्पण सफल होता है, तो यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी और यह संदेश देगा कि आर्थिक अपराधियों को कानून से बचने का मौका नहीं मिलेगा।