राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से यह स्पष्टता मांगी है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर सहमति देने के लिए समयसीमा निर्धारित की जा सकती है। यह सवाल हाल ही में तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में उठाया गया है, जिसमें राज्यपाल को तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था।
राष्ट्रपति ने इस आदेश को संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों में हस्तक्षेप मानते हुए सवाल उठाया है कि क्या कोर्ट को ऐसी समयसीमा निर्धारित करने का अधिकार है।
राष्ट्रपति ने कुल 14 सवालों के माध्यम से यह जानना चाहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के तहत दिए गए आदेश राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक भूमिकाओं से ऊपर हैं। इसके अलावा, क्या राज्य सरकारें कोर्ट की “सम्पूर्ण न्याय” की शक्तियों का दुरुपयोग केंद्र के खिलाफ कर रही हैं? क्या राज्यपाल के निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
इस कदम से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ती खींचतान को लेकर संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। केंद्र सरकार ने भी इस आदेश को “न्यायिक अतिक्रमण” बताते हुए संविधान पीठ गठित करने की मांग की है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस आदेश पर गंभीर आपत्ति जताई है, इसे “लोकतंत्र के लिए खतरे” के रूप में देखा है।