रहस्यों से भरा है हैदराबाद का गोलकोंडा किला, जानें इसकी अनोखी खूबियों के बारे में

प्राचीन काल से ही भारत किलों और स्मारकों का देश माना जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश में अंग्रेजों से पहले अलग-अलग इलाकों में कई राजा राज किया करते थे, इस दौरान उन्होंने कई किले बनवाए थे, इसीलिए आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज भी रहस्यों से भरा हैं, और इस किले का नाम है गोलकोंडा फोर्ट.

क्या है इतिहास
दरअसल गोलकोंडा किले का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था, ये किला ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है, जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं, यह किला पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है. ये किला देश की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील हुसैन सागर से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, इस किले का निर्माण कार्य 1600 के दशक में पूरा हुआ था, लेकिन इसे बनाने की शुरुआत 13वीं शताब्दी में ही शुरू कर दी गई थी.

क्यों प्रसिद्ध है गोलकोंडा किला
भारत में ये किला इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि प्राचीन काल में यहां भारी मात्रा में कपास की खेती होती थी. इसके जरिए विदेशों में कपास से बने कपड़ों को बेचा जाता था, जिसके चलते प्राचीन काल में देश की अर्थव्यवस्था में हैदराबाद के गोलकोंडा किले का एक अहम योगदान रहता था. यह किला आज भी अपनी वास्तुकला, पौराणिक कथाओं, इतिहास और रहस्यों के लिए जाना जाता है. ये किला देश में आज भी इसलिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है क्योंकि दुनिया का सबसे कीमती हीरा यहीं से मिला था.

इस किले का सबसे बड़ा रहस्य ये है कि इसे इस तरह बनाया गया है कि जब कोई किले के तल पर ताली बजाता है तो उसकी आवाज बाला हिस्सार गेट से गूंजते हुए पूरे किले में सुनाई देती है, आपको जानकार हैरानी होगी कि हमारा कोहिनूर जो आज ब्रिटिश के पास है, वो हैदराबाद के गोलकोंडा से ही मिला था. दुनियाभर के लोकप्रिय हीरे जैसे कोहि-ए-नूर, दरिया-ए-नूर, नूर-उल-ऐन हीरा, होप डायमंड और रीजेंट डायमंड की खुदाई गोलकुंडा की खानों में की गई थी.

गोलकोंडा किले की क्या है वर्तमान स्थिति
गोलकोंडा किला आज भी अपने अतीत का प्रमाण देने के लिए चट्टान की तरह मिसाल बनकर खड़ा है. हलांकि किले के आस पास बहुत सी चीजें खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, लेकिन आज भी जब लोग हैदराबाद घूमने जाते हैं, तो गोलकोंडा किला घूमना नहीं भूलते.

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