ओड़िशा के झारसुड़गा जिले में 444 बंगाली भाषी मजदूरों को “बांग्लादेशी” होने के संदेह में हिरासत में लिया गया, जिसे लेकर टीएमसी और भाजपा के बीच तीखी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और समीरुल इस्लाम ने कहा कि इनमें से कई मजदूरों के पास आधार और वोटर कार्ड सहित वैध पहचान पत्र हैं, फिर भी उन्हें हिरासत में लिया गया। मोइत्रा ने चेतावनी दी, “बंगाली पर्यटक भी नहीं आएंगे,” अगर मजदूरों को तुरंत रिहा नहीं किया गया ।
वहीं, ओड़िशा पुलिस का कहना है कि इनमें से कुछ के दस्तावेज़ नदारद थे, इसलिए वे हिरासत में हैं और सत्यापन प्रक्रिया चल रही है । साथ ही, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर संज्ञान लेकर कहा कि यह केवल राज्य का मामला नहीं है, बल्कि मुलरका न्याय है—“silent spectator” नहीं रह सकता।
ये घटनाएँ बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों के अधिकारों, पहचान के आधार पर भेदभाव, तथा केंद्र-राज्य और विपक्षी पार्टियों के बीच गहराई से जुड़ी तनाव की झलक पेश करती हैं। अब सवाल यह कि, दस्तावेज सत्यापित होने के बाद बाकी मजदूरों की क्या स्थिति होगी और क्या यह विवाद आगे किसी कानूनी लड़ाई में बदल जाएगा।