आत्मशांति: पितृपक्ष में पूर्वज पृथ्वी पर परिजनों के पास आते हैं, पितरों का श्रद्धा के साथ करें श्राद्ध

आज से हमारे देश में श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) आरंभ हो गए हैं. हिंंदू शास्त्रों के अनुसार (16 दिन) तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में हम अपने पितरोंं का (पूर्वजों) तर्पण करते हुए आराधना करते हैं. श्राद्ध के दिनों में पवित्र मन से अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ सूर्य को जल विसर्जित किया जाता है. हिंदू रीति रिवाजों में पितृ पक्ष का बड़ा महत्त्व है . इन दिनों श्राद्ध करने से पितर तृप्त होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं.

सनातन धर्म में ही ऐसी सभ्यता रही है कि हम अपने पितरों को देवता के बराबर स्थान देते हैं. पुराणों में कहा गया है कि श्राद्ध के दिनों में पितर पृथ्वी पर आते हैं. पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं. इनकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होकर, समापन अमावस्या पर होता है. शास्त्रों में श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा से बताया गया है. इस बार पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां.

20 सितंबर 2021, सोमवार: पूर्णिमा श्राद्ध, 21 सितंबर, मंगलवार: प्रतिपदा श्राद्ध, 22 सितंबर, बुधवार: द्वितीया श्राद्ध, 23 सितंबर, गुरुवार: तृतीया श्राद्ध, 24 सितंबर, शुक्रवार: चतुर्थी श्राद्ध, 25 सितंबर, शनिवार: पंचमी श्राद्ध, 27 सितंबर, सोमवार: षष्ठी श्राद्ध, 28 सितंबर, मंगलवार: सप्तमी श्राद्ध, 29 सितंबर, बुधवार: अष्टमी श्राद्ध, 30 सितंबर, गुरुवार: नवमी श्राद्ध, 1 अक्तूबर, शुक्रवार: दशमी श्राद्ध, 2 अक्तूबर, शनिवार: एकादशी श्राद्ध, 3 अक्तूबर, रविवार: द्वादशी, संन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध, 4 अक्तूबर, सोमवार: त्रयोदशी श्राद्ध, 5 अक्टूबर, मंगलवार: चतुर्दशी श्राद्ध, 6 अक्टूबर, बुधवार: अमावस्या श्राद्ध समापन होगा. पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को याद कर उनकी आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। देश की प्रमुख जगहों जैसे हरिद्वार, गया आदि जाकर पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं, वहीं इन दिनों में कुछ कार्य ऐसे हैं, जिनकी करने की मनाही है.

हिंदू धर्म में पूर्वजों की आत्मशांति के लिए किया जाता है श्राद्ध-

पितृ पक्ष के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. माना जाता है कि यदि पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी परेशानियों और तरह-तरह की समस्याओं में पड़ जाता है और खुशहाल जीवन खत्म हो जाता है. साथ ही घर में भी अशांति फैलती है और व्यापार और गृहस्थी में भी हानि होती है. ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना आवश्यक है. श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है.

पितृ पक्ष में दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. कहा जाता है पितृ पक्ष में यमराज पितरो को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं. इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी व नाराज हो जाती है. अथर्ववेद में कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में रहता है, तब पितरों को तृप्त करने वाली चीजें देने से स्वर्ग मिलता है.

इसके साथ ही याज्ञवल्क्य स्मृति और यम स्मृति में भी बताया गया है कि इन 16 दिनों में पितरों के लिए विशेष पूजा और दान करना चाहिए. इनके अलावा पुराणों की बात करें तो ब्रह्म, विष्णु, नारद, स्कंद और भविष्य पुराण में बताया गया है कि श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों की पूजा कैसे की जाए. ग्रंथों में कहा गया है कि पितृपक्ष शुरू होते ही पितृ मृत्युलोक में अपने वंशजों को देखने के लिए आते हैं और तर्पण ग्रहण करके लौट जाते हैं. इसलिए, इन दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और अन्य तरह के दान किए जाते हैं.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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