सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बिजली टैरिफ निर्धारण एक नियमित वैधानिक कार्य है जो केवल राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC) के द्वारा ही किया जा सकता है, ना कि निजी समझौतों के ज़रिए । इसके साथ ही, गुजरात की GUVNL की अपील खारिज कर दी गई जिसमें उसने कुछ wind energy आपूर्तिकर्ताओं के साथ ₹3.56 प्रति यूनिट तय टैरिफ को लागू करने का प्रयास किया था।
न्यायाधिकरण ने यह भी स्पष्ट किया कि डिस्कॉम यानी बिजली वितरण कंपनियाँ किसी खरीद समझौते (PPA) के ज़रिए मानक टैरिफ से हटकर दरें नहीं थोप सकतीं। इसके अनुसार, 2010 के GERC निर्णय के आधार पर, केवल उन wind power परियोजनाओं को ₹3.56 प्रति यूनिट मिल सकता है, जिन्होंने accelerated depreciation का लाभ लिया हो।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि बिजली कंपनियाँ अब अतिरिक्त चार्ज या महंगे दरें उपभोक्ताओं को थोपने में सक्षम नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य नियामक आयोगों के अधिकार को मजबूत करते हुए यह संदेश दिया कि बिजली टैरिफ केवल वैधानिक प्रक्रिया से तय होगा—not private bargains.