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कोरोना ने बढ़ाई भारत की मुसीबतें, छिन सकता है दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्था का ताज

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सांकेतिक फोटो


कोरोना वायरस महामारी ने लाखों-करोड़ों भारतीयों के सपने चकनाचूर कर दिए हैं. भारत की अर्थव्‍यवस्‍था जो तेजी से आगे बढ़ रही थी, औंधे मुंह गिरी है. दसियों लाख लोग गरीबी से बाहर आ रहे थे, मेगासिटीज खड़े किए जा रहे थे, भारत की ताकत बढ़ रही थी और वह एक आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर था. मगर देशभर में जिस तरह के आर्थिक हालात बने हैं, उससे चिंता कई गुना बढ़ गई है. भारत की अर्थव्‍यवस्‍था किसी और देश के मुकाबले तेजी से सिकुड़ी है. न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, कुछ अनुमान कहते हैं कि करीब दो करोड़ लोग फिर से गरीबी में जा सकते हैं. ज्‍यादातर एक्‍सपर्ट्स इस नुकसान का ठीकरा लॉकडाउन पर फोड़ रहे हैं.

नहीं सुधरे हालात तो अर्थव्‍यवस्‍था हो जाएगी ध्‍वस्‍त
देश की अर्थव्‍यवस्‍था का क्‍या हाल है, इसे आप सूरत की टेक्‍सटाइल मिलों में देख सकते हैं. जिन फैक्ट्रियों को खड़ा करने में पीढ़‍ियां लग गईं, वहां अब उत्‍पादन पहले के मुकाबले 1/10 रह गया है. वहां के उन हजारों परिवारों के लटके हुए चेहरों में भारत की दशा दिखेगी जो साड़‍ियों को फिनिशिंग टच देते थे, मगर अब सब्जियां और दूध बेचने पर मजबूर हैं. मोबाइल फोन की दुकानें हों या कोई और स्‍टोर, सन्‍नाटा पसरा है. पिछली तिमाही में भारत की अर्थव्‍यवस्‍था 24% तक सिकुड़ गई जबकि चीन फिर से ग्रो कर रहा है. अर्थशास्‍त्री तो यहां तक कहते हैं कि भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्था (अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के बाद) होने का गौरव भी गंवा सकता है.

कोरोना ने और बढ़ा दीं भारत की मुसीबतें
एक्‍सपर्ट कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लॉकडाउन सख्‍त तो था मगर उसमें कई खामियां थीं. इससे अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान तो पहुंचा ही, वायरस भी तेजी से फैला. भारत में अब कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और रोज 80 हजार से ज्‍यादा नए केस आ रहे हैं. देश की आर्थिक स्थिति पहले से ही डांवाडोल चल रही थी. चीन ने बॉर्डर पर तनातनी कर रखी है. मशहूर लेख‍िका अरुंधति रॉय ने न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स से बातचीत में कहा, “इंजन खराब हो चुका है. सर्वाइव करने की काबिलियत खत्‍म कर दी गई है. और उसके टुकड़े हवा में उछाल दिए गए हैं, आपको नहीं पता कि वे कब और कैसे गिरेंगे.”

जवाहरलाल नेहरू में डेवलपमेंट इकॉनमिस्‍ट जयति घोष ने न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स से कहा, “यह शायद स्‍वतंत्रता के बाद भारत का सबसे बुरा दौर है. लोगों के पास पैसा नहीं है. निवेशक निवेश नहीं करेंगे अगर बाजार ही नहीं होगा. और अधिकतर चीजें बनाने की लागत ज्‍यादा हो गई है.”

लॉकडाउन में जल्‍दबाजी महंगी पड़ी?
तिमाही दर तिमाही भारतीय अर्थव्यवस्‍था के बढ़ने की रफ्तार घटती चली गई है. 2016 में यह 8% थी जो कोरोना के शुरू होने से पहले 4% तक आ गई थी. चार साल पहले, भारत ने नोटबंदी के जरिए देश की 90% पेपर करेंसी बंद कर दी. लक्ष्‍य था भ्रष्‍टाचार कम करना और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देना. अर्थशास्त्रियों ने इसका स्‍वागत किया मगर वे कहते हैं कि मोदी ने जिस तरह ये सब लागू किया, उससे अर्थव्‍यवस्‍था को लंबा नुकसान हुआ. वैसी ही जल्‍दबाजी कोरोना के समय भी दिखी. 24 मार्च को रात 8 बजे मोदी ने रात 12 बजे से अर्थव्‍यवस्‍था बंद कर दी. भारतीय घरों में कैद हो गए. फौरन भी कई लोग लोगों से रोजगार छिन गया. प्रवासी मजदूरों के पलायन ने अलग संकट पैदा किया. कई अर्थशास्‍त्री लॉकडाउन के क्रियान्‍वयन को कोरोना के ताजा हालात के लिए जिम्‍मेदार मानते हैं.

घर से बाहर कम निकल रहे लोग
वर्ल्‍ड बैंक के पूर्व चीफ इकॉनमिस्‍ट कौशिक बसु ने कहा, “2020 की दूसरी तिमाही में स्‍लोडाउन लगभग पूरी तरह से लॉकडाउन के नेचर की वजह से है. यह फायदेमंद तब होता जब महामारी काबू में आ जाती, मगर ऐसा नहीं हुआ.” वायरस से संक्रमित होने का डर लॉकडाउन के बाद भी बरकरार है. गूगल मोबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के पहले के मुकाबले अनलॉक में 39% कम लोग बाहर निकल रहे हैं. मोदी सरकार ने 260 बिलियन डॉलर की आपातकालीन सहायता का ऐलान किया मगर उससे गरीबों को कोई खास फायदा नहीं हुआ. कुछ राज्‍यों के पास हेल्‍थ वर्कर्स को देने तक का पैसा नहीं है. सरकारी कर्ज पिछले 40 साल के उच्‍चतम स्‍तर के करीब पहुंच रहा है.

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