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विजयादशमी पर संघचालक मोहन भागवत ने देश को तोड़ने नहीं बल्कि जोड़ने वाली संस्कृति का पुरजोर समर्थन किया

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत

नागपुर| विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने देश को तोड़ने नहीं बल्कि जोड़ने वाली संस्कृति का पुरजोर समर्थन किया.

भागवत ने कहा- ‘यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है. 15अगस्त 1947को हम स्वाधीन हुए. हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए.स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था.हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली.’

उन्होंने कहा- ‘स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएँ मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खडे किये.’

सरसंघचालक ने कहा ‘समाज की आत्मीयता व समता आधारित रचना चाहने वाले सभी को प्रयास करने पड़ेंगे. सामाजिक समरसता के वातावरण को निर्माण करने का कार्य संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता गतिविधियों के माध्यम से कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा ‘हम ऐसी संस्कृति नहीं चाहते जो विभाजन को बढ़ाए बल्कि उस संस्कृति के समर्थक हैं जो राष्ट्र को एक साथ बांधे और प्रेम को बढ़ावा दे… इसलिए जन्मदिन, त्योहार जैसे विशेष अवसर एक साथ मनाए जाने चाहिए.’

भागवत ने कहा- ‘स्वाधीनता से स्वतंत्रता तक का हमारा सफर अभी पूरा नहीं हुआ है. दुनिया में ऐसे तत्व हैं जिनके लिए भारत की प्रगति और एक सम्मानित स्थिति में उसका उदय उनके स्वार्थों के लिए हानिकारक है’.

उन्होंने कहा ‘इस वर्ष श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती है. उन्होंने हमारे ‘स्व’ के आधार पर भारत के निर्माण पर विस्तार से लिखा. यह श्री धर्मपाल का शताब्दी वर्ष भी है. उन्होंने गांधीजी से प्रेरणा ली और अंग्रेजों के सामने भारत के इतिहास के साक्ष्य प्रस्तुत करने का काम किया.’

उन्होंने कहा ‘यदि सनातन मूल्य-व्यवस्था पर आधारित विश्व की कल्पना करने वाला धर्म भारत में प्रबल होता है तो स्वार्थी शक्तियों अपने आप खत्म हो जाएंगी.’

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