औषधि और मसाला दोनों ही हैं तुलसी! पढ़ें इस पौधे से जुड़ी खास बातें

हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बेहद पवित्र माना जाता है और इसे देवी का दर्जा हासिल है. यह ऐसा पौधा भी है जिसका धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में गुणों व उपयोगिता का भरपूर वर्णन मिलता है. घरेलू उपचार के अलावा तुलसी का अनेक दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसके पत्तों में जबर्दस्त प्रतिरोधक क्षमता होती है. विशेष बात यह है कि तुलसी औषधि भी है और मसाला भी. भारतीय समाज और संस्कृति में तुलसी का महत्व इसी बात से पता चल जाता है हर परिवार इसे अपने आंगन या दरवाजे पर लगानाचाहता है. शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे दीया जलाने का प्रचलन हजारों सालों से है. मान्यता है कि ऐसा करने से शाम के समय तुलसी से निकली गंध दीपक से निकली उष्मा से मिलकर वायु को शोधित करती है. ऐसा भी कहा जाता है कि इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सुख शांति का वास भी होता है.

तुलसी भारतीय पौधा है. ऐसा कहा गया है कि दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह पैदा हुई. लेकिन सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब (बठिंडा) कन्फर्म कर चुका है कि तुलसी की उत्पत्ति उत्तर मध्य भारत में हुई है. इस मसले को लेकर कोई किंतु-परंतु नहीं है कि तुलसी हजारों साला पुराना पौधा है. उसका कारण यह है कि भारत के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ वेदों में इसका वर्णन है. अथर्ववेद के एक सूक्त में (1-24) कहा गया है कि ‘सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता. इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥’ अर्थात्- श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महाऔषधि है. अब यह पौधा संपूर्ण दुनिया में नम मिट्टी में स्वभाविक रूप से मिलता है. पद्मपुराण के अनुसार ‘तुलसी का पत्ता, फूल, फल, मूल, शाखा, छाल, तना और मिट्टी आदि सभी पावन हैं.’

धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर मिला, उसी के प्रभाव से ही तुलसी की भी उत्पत्ति हुई. एक अन्य कथा यह है कि भगवान विष्णु एक जलंधर असुर को मारना चाहते थे, लेकिन उसे मार नहीं पा रहे थे. देवताओं ने विष्णुजी को जानकारी दी कि इसकी पत्नी वृंदा कठोर तपस्विनी है और आपको पूजती है. भगवान विष्णु ने उसकी तपस्या भंग कर दी, जिसके बाद जलंधर मारा गया. उस तपस्विनी ने श्राप देकर विष्णु को पत्थर (शालिग्राम) बना दिया. लक्ष्मी की याचना पर वृंदा ने श्राप वापस ले लिया और पति के साथ ही प्राण त्याग दिए. उसकी राख से एक पौधा निकला जो तुलसी कहलाया.

अब तुलसी के गुण सुनिए. भारत के अधिकतर प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में तुलसी की विशेष महत्ता है. चरकसंहिता में वर्णन है कि तुलसी हिचकी, खांसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल (पसलियों में दर्द) को नष्ट करती है. यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर की दुर्गंध दूर करती है. सुश्रुत संहिता में कहा गया है कि तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खांसी और दुर्गंध नाशक है. अन्य पौराणिक ग्रंथ भावप्रकाश में कहा गया है कि तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गंध नाशक है. पसली का दर्द, अरुचि, खांसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है.

हरियाणा के सोनीपत स्थित सरकारी भगतफूल सिंह महिला विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग की प्रमुख डॉ. वीना शर्मा के अनुसार तुलसी औषधि भी है और मसाला भी. अनेकों दवाओं में इसका प्रयोग तो होता ही है साथ ही चाय या काढ़े को स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए मसाले के रूप में इसका इस्तेमाल होता है. यह एक औषधीय पौधा है जिसमें विटामिन व खनिज प्रचुर मात्रा में हैं. यह यह रक्त शर्करा के स्तर को भी कंट्रोल करती है. तुलसी की पत्तियों के रस को बुखार, ब्रोकाइटिस, खांसी, पाचन संबंधी शिकायतों में देने से राहत मिलती है. कान के दर्द में भी तुलसी के तेल का उपयोग किया जाता है. आयुर्वेद में मधुमेह, मोटापा और तंत्रिका विकार के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है. अन्य भाषाओं में तुलसी के नाम- तमिल में तुलशी, तेलुगु में गग्गेर चेट्टु, मलयालम में कृष्णतुलसी, कन्नड़ में एरेड तुलसी, उड़िया में तुलसी, गुजराती में तुलसी, बंगाली में तुलसी, मराठी में तुलंस, इंग्लिश में Holy Basil.









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