Home उत्‍तराखंड जानिए भवाली का ताजमहल कहे जाने वाले लल्ली मंदिर का इतिहास

जानिए भवाली का ताजमहल कहे जाने वाले लल्ली मंदिर का इतिहास

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भवाली का ताजमहल कहे जाने वाला लल्ली मंदिर

नैनीताल के भवाली में स्थित है एक मंदिर, जो राजपूत राजघराने की धरोहर है. इसे लल्ली मंदिर कहा जाता है. यह बीकानेर के राठौर वंश के राजघराने की राजकुमारी चांद कुंवर उर्फ लल्ली की याद में बनाया गया था, जिनकी मृत्यु महज 16 साल की उम्र में हो गई थी. यह इमारत भवाली के ताजमहल के नाम से भी जानी जाती है.

लल्ली कबर, लल्ली मंदिर, लल्ली छतरी नाम से जाने वाली भवाली की यह धारोहर असल में बीकानेर के राठौर वंश के राजघराने की महाराजकुमारी श्री चन्दकंवरजी बैसा साहिब (पुत्री राणावतीजी महारानी) की याद में बनाई गयी है, जिनका जन्म 1 जुलाई 1899 को जूनागढ़ बीकानेर में हुआ और मृत्यु मात्र सोलह वर्ष की आयु में भवाली सेनेटोरियम में 31 जुलाई 1915 को हुई. यह स्मारक असल में सोलह वर्षीय महाराजकुमारी (लल्ली) की समाधि है. महाराजकुमारी लल्ली जनरल हिज हाईनेस राज राजेश्वर महाराजाधिराज नरेन्द्र महाराजाशिरोमणि सर गंगा सिंह बहादुर, महाराजा ऑफ बीकानेर की पुत्री थी.

भवालीवासियों की प्यारी लल्ली उर्फ राजकुमारी चन्दकंवर बैसा. फोटो- इन्डियन राजपूत वेबसाइट से साभार

महाराजा गंगा सिंह जी की लल्ली की माताजी राणावतीजी महारानी के अलावा दो और शादियाँ थी. लल्ली की माँ महारानी राणावतीजीश्री वल्लभ कुंवरजी साहिब प्रतापगढ़ के महाराजा सर रघुनाथ सिंह बहादुर की बेटी थी. महाराजा गंगा सिंह जी की दूसरी शादी तंवरजी महारानी साहिब बीकानेर राज्य के संवतसर के ठाकुर श्री सुल्तान सिंह की बेटी और तीसरी शादी भटियांजी महारानीश्री अजब कंवरजी साहिब, मारवाड़ के बीकमकोर के ठाकुर श्री बहादुर सिंह की पुत्री से हुई थी.

क्षेत्रीय लोगों में मान्यता थी कि मंदिर का कलश सोने का बना हुआ है. इसी भ्रम के चलते एक बार चोरों नें कलश को काटकर चुरा लिया था. बाद में पुन: एक नया कलश बनाकर इसके उपर स्थापित किया गया. इस स्थान की चौकीदारी शूरसिंह माली नामक एक व्यक्ति किया करते थे जिनका हमारे आमा बूबू से मिलना-जुलना लगा रहता था.

वो रानीखेत के पास कफड़ा से ताल्लुक रखते थे और उनकी चार पुत्रियाँ और एक पुत्र हुआ करते थे. उनकी पत्नि को हम आमा कहते थे और उनकी आज्ञा लेकर परिसर में यदा-कदा घुस जाया करते थे. उस समय राजघराने से परिसर के रखरखाव के लिये पैसा आया करता था. शूरसिंह माली जी की मृत्यु व राजघराने की उदासीनता के बाद यह परिसर अतिक्रमण का शिकार हो गया.

भवाली का यह ताजमहल आज भी जस का तस है परंतु यह अब फुलवारियों की बजाय कंक्रीट के जंगलों से घिर गया है. लल्लीमंदिर परिसर में आज अनेकाअनेक मकान बन चुके हैं. राहत की बात यह है कि लल्ली का नाम आज भी उस जगह पर गूंजता है. लल्लीमंदिर को भले ही लोग जानते हों या नहीं लल्ली मंदिर परिसर लोगों के पते में अपना स्थान बना चुका है.

यह भवाली के इतिहास में महत्त्व रखती है. यह सही मायने में भवाली का ताजमहल ही है. आज भी राजस्थान सरकार इस धरोहर के लिए पैसा देती है.

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