अनंग त्रयोदशी 2021: भगवान शिव ने कामदेव को क्यों किया था भस्म! पढ़ें यह कथा

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को अनंग त्रयोदशी का व्रत रखा जाता है. इस वर्ष अनंग त्रयोदशी व्रत 16 दिसंबर दिन गुरुवार को है. इस दिन भगवान शिव , माता पार्वती , कामदेव और रति की पूजा की जाती है.

आज की तिथि को ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था. आखिर ऐसी स्थिति क्यों आई कि भगवान शिव इतने क्रोधित हो गए और कामदेव को अपनी तीसरी आंख खोलकर भस्म कर दिया. फिर उनको अनंग बताया. आइए पढ़ते हैं अनंग त्रयोदशी की यह कथा.

तारकासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न करके स्वयं के लिए अमरता का वरदान मांगा था, लेकिन भगवान शिव उसे वरदान दिया था ​कि उसे तीनों लोक में कोई नहीं मार सकता है, सिवाय शिव पुत्र के.

तारकासुर ने सोचा कि भगवान शिव तो स्वयं वैरागी हैं, उनकी संतान का प्रश्न ही नहीं है. वह शिव वरदान पाकर बहुत बलशाली हो गया और तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया.

सभी लोग उसके अत्याचारों से त्रस्त हो गए थे. सभी देव ने ब्रह्मा जी से मदद की गुहार लगाई, तो उन्होंने बताया कि इसका अंत शिव पुत्र के हाथों होना है. अब समस्या यह थी कि माता सती के आत्मदाह के बाद से भगवान शिव काफी समय से ध्यान में मग्न थे. उनके ध्यान को भंग करने का साहस किसी में भी नहीं था. उधर जब माता पार्वती जी से विवाह होता, तभी शिव पुत्र की कल्पना भी की जा सकती थी.

देवताओं को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, तभी उन लोगों की मदद करने के लिए कामदेव आए. उन्होंने पत्नी रति के साथ जाकर भगवान शिव का ध्यान भंग करने का प्रयास किया. अंतत: वे सफल हो गए, लेकिन सती वियोग में क्रोधित भगवान शिव के समक्ष कामदेव प्रत्यक्ष थे. भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया.

यह देखकर रति विलाप करने लगीं. तभी सभी देव प्रकट हुए और भगवान शिव को उनका ध्यान भंग करने का कारण बताया. तब भगवान शिव ने रति से कहा कि द्वापर युग में कामदेव को प्रद्युम्न के रुप में शरीर प्राप्त होगा. फिलहाल वे अनंग हैं, बिना अंगों वाले. भगवान शिव ने कहा कि आज की तिथि अनंग त्रयोदशी के नाम से जानी जाएगी. जो आज के दिन शिव-शक्ति के साथ कामदेव और र​ति की पूजा करेगा, उसे संतान सुख और सुखी वैवाहिक जीवन प्राप्त होगा.

इसके बाद भगवान शिव जी का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ. भगवान कार्तिकेय के जन्म के बाद तारकासुर का भी अंत हो गया.

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