लोकसभा चुनाव में मिली हार का जख्म भरने के लिए शत्रुघ्न बेटे की राजनीति चमकाने उतरे

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बिहार में लोकसभा या विधानसभा चुनाव हो फिल्म स्टार और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा की सियासत उफान मारने लगती है. ‘अबकी बार भी बिहार विधानसभा चुनाव में बिहारी बाबू का सियासत के मैदान में कूदने का मन मचलने लगा’.

लेकिन इस बार चुनाव वे खुद नहीं लड़ रहे हैं बल्कि अपने बेटे के लिए सियासत की पिच को तैयार करने में जुट गए हैं.‌ चर्चा को आगे बढ़ाएं आइए आपको एक वर्ष पीछे लिए चलते हैं.

‘पिछले वर्ष भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस से बिहार के पटना साहिब से लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से हार का सामना करना पड़ा था’.

बता दें कि पटना साहिब संसदीय सीट से शत्रुघ्न सिन्हा लगातार दो बार चुनावी जंग फतह कर संसद पहुंच चुके हैं, लेकिन दोनों बार वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे। कायस्थ मतों की बहुलता के चलते शत्रुघ्न ने इस सीट को अपनी परंपरागत सीट बनाया था.

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में वो कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे थे, बीजेपी ने अपने दूसरे कायस्थ नेता रविशंकर प्रसाद को उतारकर शत्रुघ्न के समीकरण को बिगाड़ दिया था.

लेकिन ‘इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी लोकसभा चुनाव में मिली हार का जख्म भरने के लिए बेटे की राजनीति को चमकाने के लिए कांग्रेस की पिच पर मैदान में हैं’.

डेढ़ साल से सक्रिय राजनीति से दूर रहे बिहारी बाबू फिर सियासी जमीन तलाशने उतरे
पिछले वर्ष कांग्रेस के टिकट पर लड़े शत्रुघ्न सिन्हा की लोकसभा चुनाव में हार सदमें से कम नहीं थी. ‘लगभग डेढ़ साल बाद सक्रिय राजनीति से दूर रहे फिल्म स्टार और पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा एक बार फिर बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सक्रिय हो गए हैंं’.

लेकिन इस बार वह बिहार चुनाव में अपने बड़े बेटे लव सिन्हा को राजनीति के मैदान में लॉन्च कर रहे हैं. ‘बिहार विधानसभा चुनाव में लव सिन्हा पटना के बांकीपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाएंगे’. बता दें कि यह बांकीपुर विधानसभा सीट शत्रुघन सिन्हा की मनपसंद मानी जाती है.

लोकसभा चुनाव के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा इस क्षेत्र से सबसे अधिक वोट भी पाते रहे हैं. अब एक बार फिर अपने बेटे के सहारे वोटरों को लुभाते हुए नजर आएंगे. यह सीट कायस्थ बाहुल्य मानी जाती है.

बता दें कि ‘बिहार चुनाव हो या देश के किसी भी हिस्से में हो एक समय शत्रुघ्न सिन्हा भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक हुआ करते थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शत्रुघ्न सिन्हा पर चुनाव प्रचार के दौरान बहुत भरोसा करते थे.

लेकिन धीरे-धीरे भाजपा में मोदी युग आने के बाद बिहारी बाबू की उपेक्षा की जाने लगी, इससे आहत होकर शत्रुघ्न सिन्हा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था’.

बिहारी बाबू जिस उद्देश्य से कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे उनको वह मुकाम नहीं मिल पाया. अब बेटे के सहारे कांग्रेस में सियासत की जमीन तलाशने उतरे हैं बिहारी बाबू.

लव सिन्हा के लिए कायस्थ बाहुल्य बांकीपुर सीट पर फतह करना नहीं होगा आसान
यहां हम आपको बता दें कि राजधानी पटना से लगी हुई बांकीपुर क्षेत्र कायस्थ बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है, साथ ही यह भाजपा का गढ़ भी है. ऐसे में लव सिन्हा के लिए यहां से चुनाव जीतना आसान नहीं होगा.

लव की अपनी कोई राजनीतिक पहचान नहीं है, वो पिता की सियासी विरासत को संभालने राजनीतिक पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। बिहारी बाबू अपने परंपरागत कायस्थ वोटरों के सहारे ही अपने बेटे की जीत की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

वहीं कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में आने से लव सिन्हा को महागठबंधन का भी समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा कायस्थ वोटों में भी सेंधमारी कर सकते हैं, क्योंकि शत्रुघ्न यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। यहां लव सिन्हा के अलावा प्लुरल्स पार्टी की पुष्पम प्रिया चौधरी और बीजेपी के तीन बार से विधायक नितिन नवीन मैदान में हैं.

कायस्थ समाज के अलावा यादव, मुस्लिम और दलित मतदाता काफी अहम हैं. पिछले तीन दशक से कायस्थ समुदाय से आने वाले नितिन नवीन विधायक चुने जा रहे हैं. जबकि इससे पहले उनके पिता नवीन किशोर सिन्हा यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

लव सिन्हा के राजनीतिक करियर की यदि बात करें तो उनकी पहचान पिता से है, ऐसे में लव सिन्हा को जिताने की जिम्मेदारी भी शत्रुघ्न सिन्हा के कंधों पर होगी.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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