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जन्मदिवस विशेष: सत्ता में हों या विपक्ष में आदर्शों-उसूलों से नहीं किया समझौता, राजनीति के सिद्धांतों पर रहे ‘अटल’

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अटल बिहारी वाजपेयी

आज 25 दिसंबर है. ‌यह तारीख देश के एक ऐसे राजनेता की याद दिलाती है जिन्होंने अपने पूरे राजनीतिक करियर में सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया. ‌

चाहे सत्ता में रहे हों या नहीं हमेशा वे अपने आदर्श और उसूलों पर टिके रहे. यह नेता अपने दल में ही नहीं बल्कि विरोधी दलों में भी खूब लोकप्रिय रहे. ‌

हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न और भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी जी की. आज देश और विदेश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है. अटल जी का जन्मदिवस पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है.

भाजपा भी अटल जी के जन्म दिवस पर देशभर कई कार्यक्रम आयोजित कर रही है.अटल बिहारी वाजपेयी की आज 97वीं जयंती है.

इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने अटल जी को श्रद्धांजलि दी. राष्ट्रपति कोविंद और पीएम मोदी ने राजधानी दिल्ली स्थित ‘सदैव अटल’ स्मृति स्थल पर पुष्प अर्पित किए. स्मृति स्थल पर प्रार्थना सभा आयोजित की गई.

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर लोग कवि और राजनेता को याद करते हुए उनकी कविताओं के माध्यम से श्रद्धांजलि दे रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता रहे जो सभी राजनीतिक दलों और धर्मों में लोकप्रिय थे.

अटल जी ने राजनीति के सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया. राजनेता कवि, समाज प्रेमी, शिक्षक, पत्रकार में भी सफल रहे. संसदीय जीवन हो या उनकी कविताओं को सुनने के लिए लोग उतावले रहते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री रहे. अपने कार्यकाल में देश के राष्ट्रीय हितों को बहुत ऊंचाइयां प्रदान की. कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अटल जी ने उदारवादी रवैया अपनाया. उनका सुशासन का सिद्धांत भी प्रसिद्ध है.

इसी वजह से वाजपेयी के सम्मान में ही हर साल 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस को मनाना का उद्देश्य भारतवासियों को सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेदारियों के लिए जागरूकता फैलाना है.

25 दिसंबर 1924 को अटल बिहारी वाजपेयी का ग्वालियर में हुआ था जन्म
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपोयी स्कूल में अध्यापक थे. उनकी शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में और उसके बाद में उज्जैन के बारनगर के एंग्लोवर्नाकुलर मिडिल स्कूल में हुई थी.

ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में बीए, और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की. 1939 में ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े.

आजादी के बाद उन्हें पंडित दीन दयाल उपाध्याय और फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ काम करने का मौक मिला. वे हमेशा ही अपने वाककौशल से अपने विरोधियों तक को प्रभावित करते रहे. वे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले दुनिया के सबसे पहले व्यक्ति भी बने.

अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन बार प्रधानमंत्री पद की संभाली कमान
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री रहे. सबसे पहले 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने थे और उसके बाद 1998 में उन्होंने केंद्र में 13 महीनों की सरकार चलाई थी. 1999 में वह तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने और 2004 में एनडीए की हार तक इस पद पर बने रहे.

उनके कार्यकाल में भारत ने परमाणु परीक्षण कर यह क्षमता हासिल की थी. प्रधानमंत्री रहते हुए थे वाजपेयी ने पड़ोसी पाकिस्तान से भी अच्छे संबंध बनाए. बात 2004 की है. सब कुछ सही चल रहा था. केंद्र में राजग की सरकार थी. अटल जी प्रधानमंत्री थे. देश ही नहीं पूरे विश्व में अटल जी का डंका बज रहा था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अटल जी की कूटनीति की बदौलत ही एक शानदार छवि बन चुकी थी.

अभी लोकसभा चुनाव का कार्यकाल पूरा होने में लगभग छह माह बचे हुए थे. उसी दौरान भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं ने अटल जी से कहा कि देश में इस समय ‘फील गुड फैक्टर’ है समय से पहले चुनाव करा लिया जाए. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी देश में समय से पहले चुनाव कराने के पक्षधर नहीं थे. जब भाजपा के नेताओं का अधिक दबाव उन पर पड़ा तो वह भी रोक नहीं सके.

2004 के चुनाव में राजग की अप्रत्याशित हार के बाद उभर नहीं पाए अटल जी
2004 के लोकसभा चुनाव में राजग ने मिलकर चुनाव लड़ा. लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भाजपा के केंद्र में सरकार न बना पाने पर देशभर के राजनीतिक पंडित भी समझ नहीं सके थे.

केंद्र की सत्ता पर यूपीए सरकार काबिज हो गई. राजग के सत्ता न पाने पर मानो अटल जी को गहरा सदमा लग गया हो.

यह लोकसभा चुनाव अटल जी के लिए आखिरी चुनाव साबित हुए. धीरे धीरे अटल जी बीमारी के गिरफ्त में आते चले गए. आखिरकार अटल जी ने अपने आप को सक्रिय राजनीति से खुद को अलग कर लिया. देश और दुनिया में अपने भाषणों से लोकप्रिय हुए अटल जी अचानक ही नेपथ्य में चले गए.

बता दें कि कि 16 अगस्त 2018 को देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे अटल बिहारी वाजपेयी जी का दिल्ली के एम्स में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. अटल जी को उनके राजनीति के आदर्श-उसूल, भाषा शैली, उदारवादी नेता के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा.

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