बाजार में हलचल: लगातार दूसरे दिन अमेरिकी डॉलर मजबूत होने से रुपया अब तक सबसे निचले स्तर पर, 42 पैसे टूटा

पूरे दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को माना जाता है. ऐसे ही इसकी करेंसी डॉलर भी विश्व भर में सबसे मजबूत मानी जाती है. तमाम देशों की मुद्रा का आकलन भी डॉलर से किया जाता है. ‌ऐसे ही भारतीय करेंसी रुपये का भी डॉलर से तुलनात्मक अध्ययन होता रहा है.

डॉलर के मुकाबले लगातार दूसरे दिन भारतीय करेंसी रुपए में बड़ी गिरावट आई है. ‌ जिसकी वजह से बाजार में हलचल बढ़ गई है. ‌गुरुवार सुबह कारोबार शुरू होते ही वो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 42 पैसे टूटकर 80.38 पर आ गया. इसके साथ ही रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.

इससे पहले बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79.9750 के स्‍तर पर बंद हुआ, जबकि बुधवार सुबह 79.79 पर कारोबार शुरू हुआ था.

रुपये के निचले स्तर पर पहुंचते ही विपक्ष को केंद्र सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया है. दरअसल कोरोना महामारी के बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था बेहतरीन प्रदर्शन कर रही. वहां पर महंगाई दर ज्यादा है और रोजगारी की स्थिति भी मजबूत है.

इसके अलावा अन्य सेक्टर भी अच्छा काम कर रहे हैं. फेडरल रिजर्व भी महंगाई काबू करने के लिए कई कड़े कदम उठा रहा, जिस वजह से डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है. बता दें कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है.

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में 0.75% की बढ़ोतरी की. ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25% की गई हैं. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ जाने से वहां की मुद्रा, यानी डॉलर की कीमत बढ़ जाती है.

डॉलर मजबूत होने लगता है. इससे डॉलर की तुलना में रुपया जैसी दूसरी करेंसी की वैल्यू घट जाती है. दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकाला जाता है, तब भी रुपया कमजोर होगा. बता दें कि करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं.

डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं. हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है. विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है.

अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी. हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा.

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