सचिन इस बार गहलोत की फाइनल घेराबंदी में जुटे, पायलट गुट 3 स्ट्रैटजी पर कर रहा काम

राजस्थान में मौसम का पारा भले 20 डिग्री के आसपास हो, लेकिन कांग्रेस के भीतर की सियासी तपिश उफान पर है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच पार्टी हाईकमान अब तक विवाद सुलझाने में नाकाम रहा है. इसको लेकर पायलट गुट अब बिगूल फूंकने की तैयारी में है.

सूत्रों के मुताबिक मकर संक्रांति के बाद सचिन पायलट करीब 5 रैली और रोड शो करेंगे. सभी रैलियां कांग्रेस के गढ़ में होगी, जहां पायलट गुट के मंत्री और विधायक शामिल होंगे. रैली में बेरोजगारी और महंगाई को मुख्य मुद्दा बनाया गया है. पायलट की रैलियों ने बजट सत्र में जुटी गहलोत सरकार की टेंशन बढ़ा दी है.

पायलट गुट की डिमांड क्या है, 2 प्वॉइंट्स…

1. अनुशासनहीनता के आरोपी नेताओं पर कार्रवाई- सचिन पायलट गुट की सबसे बड़ी मांग अनुशासहीनता के आरोपी 2 मंत्री और एक नेता के खिलाफ कार्रवाई. 25 सितंबर को दिल्ली से मल्लिकार्जुन खरगे और अजय माकन को कांग्रेस हाईकमान ने ऑब्जर्वर बना कर भेजा था. मुख्यमंत्री आवास पर विधायकों की मीटिंग होनी थी, लेकिन मीटिंग में 80 से ज्यादा विधायक नहीं आए.

इस पूरे प्रकरण में ऑब्जर्वर ने मंत्री शांति धारीवाल और महेश जोशी के अलावा मुख्यमंत्री गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ को आरोपी बनाया. इस रिपोर्ट पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे पायलट गुट में भारी नाराजगी है.

2. चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला जाए- पंजाब की तरह राजस्थान में भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने की मांग पायलट गुट लगातार कर रहे हैं. 25 सितंबर की मीटिंग कैंसिल होने के बाद हाईकमान की ओर से कहा गया कि जल्द ही फिर एक मीटिंग आयोजित की जाएगी, लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में है.

पायलट गुट का तर्क है कि मुख्यमंत्री अगर जल्द नहीं बदला गया तो राजस्थान में रिवाज के मुताबिक कांग्रेस की हार होगी.

फाइनल घेराबंदी की वजह क्या है?

चुनाव में 10 महीने से भी कम का वक्त- राजस्थान विधानसभा चुनाव में 10 महीने से भी कम का वक्त बचा है. कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में 5 महीने पहले अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया. इसके बावजदू पार्टी की करारी हार हुई. हार की वजह एंटी इनकंबेंसी को माना गया, जिसे चन्नी 5 महीने में खत्म नहीं कर पाए थे.

पायलट गुट का भी यही तर्क है. अगर मुख्यमंत्री को बदलना है तो इसे जल्द में अमल में लाया जाए, जिससे नई सरकार को काम करने के लिए समय मिल सके.

भारत जोड़ो यात्रा भी राजस्थान से गुजरी- कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत-पायलट गुट में जारी शीतयुद्ध को भारत जोड़ो यात्रा की वजह से रोक दिया था. ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा भी राजस्थान से गुजर चुकी है. पायलट गुट को यही सबसे मुफीद समय लग रहा है, जब अशोक गहलोत के खिलाफ मजबूत घेराबंदी की जा सके.

धैर्य भी अब जवाब दे दिया है- सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट का धैर्य भी अब जवाब दे दिया है. कांग्रेस हाईकमान की तरफ से उन्हें लगातार सबकुछ सही होने का आश्वासन मिलता रहा है, लेकिन अब तक हाईकमान सख्त फैसले लेने में फिसड्डी साबित हुई है.

इसी वजह से सोमवार को जब एक अभियान को लेकर कांग्रेस प्रदेश कमेटी की बैठक थी, तो पायलट उससे नदारद रहे. पायलट गुट का मानना है कि अब अगर फैसला नहीं लिया गया तो चीजें आउट ऑफ कंट्रोल हो जाएगी.

घेराबंदी के लिए 3 स्ट्रैटजी….
सचिन पायलट परबतसर, झूंझनूं और शेखावटी में रैली करेंगे. यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. यहां भीड़ जुटाकर पायलट गुट शक्ति प्रदर्शन करेगा.
सोशल मीडिया पर पायलट गुट फिर से मुखर होने लगा है. पायलट के समर्थन में कैंपेन चलाए जाने की तैयारी चल रही है. कई नेता गहलोत के खिलाफ सीधे ट्वीट कर रहे हैं.
विवाद नहीं सुलझने तक प्रदेश स्तर पर होने वाली मीटिंग से पायलट गुट के नेता बायकॉट कर सकते हैं. सोमवार को पायलट ऐसा कर भी चुके हैं.
सियासी सीजफायर टूटा तो कांग्रेस की टेंशन बढ़ेगी
कांग्रेस हाईकमान की कोशिश है कि 30 जनवरी तक राजस्थान का विवाद शांत रहे, लेकिन पायलट की रैली में सियासी सीजफायर टूट सकता है. अशोक गहलोत कई इंटरव्यू में सीएम कुर्सी नहीं छोड़ने और अगला चुनाव लड़ने की भी मंशा जता दी है. ऐसे में पायलट गुट के पास ऑप्शन कम बचा है.

ऐसे में अगर दोनों के बीच तकरार बढ़ती है तो हाईकमान की किरकिरी होना तय है. 22 फरवरी से रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन भी होना है. राजस्थान के विवाद से इस पर भी असर होगा.

विवाद सुलझाने में हाईकमान नाकाम, 2 वजहें…अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद सुलझाने में पिछले 2 सालों से हाईकमान नाकाम है. इसकी 2 बड़ी वजहें है.

पायलट के पास विधायकों का समर्थन नहीं- सचिन पायलट को भले हाईकमान ने मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर दिया हो, लेकिन पायलट के पक्ष में विधायक नहीं हैं. जुलाई में जब पायलट मानेसर के रिजॉर्ट में अपने करीबियों को लेकर गए थे, उस वक्त उनके साथ सिर्फ 20 विधायक थे और गहलोत की सरकार बच गई थी.

विवाद इसी वजह से उलझा है और हाईकमान इसे सुलझा नहीं पा रही है. गहलोत के समर्थन में करीब 100 विधायक हैं.

कमजोर प्रभारी का मनोयन- राजस्थान में गहलोत-पायलट विवाद में सबसे कमजोर कड़ी अभी तक प्रभारी की नियुक्ति ही रही है. अविनाश पांडे, अजय माकन और अब सुखजिंदर रंधावा तीन प्रभारी हुए हैं, लेकिन तीनों का सांगठनिक तजुर्बा अशोक गहलोत से कम ही रहा है. इसके अलावा गहलोत की गिनती सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में होती है, यहां भी तीनों प्रभारी कमजोर साबित हुए हैं.

गहलोत-पायलट विवाद की वजह से कांग्रेस को 2 प्रभारी अविनाश पांडे और अजय माकन हटाने पड़े हैं. सचिन पायलट और अशोक गहलोत का विवाद जुलाई 2020 में शुरू हुआ था, उस वक्त इसे सुलझाने के लिए प्रियंका गांधी, अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल की कमेटी बनाई गई थी.

तीन ऑप्शन, लेकिन तीनों में पेंच
1. पायलट को मुख्यमंत्री बनाना-
कांग्रेस हाईकमान के पास पहला ऑप्शन है- पायलट को मुख्यमंत्री बनाना पर यह इतना आसान नहीं है. गहलोत ने सीएम कुर्सी को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है और किसी सूरत में उसे छोड़ना नहीं चाहते हैं. सीएम कुर्सी न छोड़नी पड़े, इसलिए गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी नहीं लड़े.

2. गहलोत के चेहरे पर चुनाव लड़ना- कांग्रेस हाईकमान के पास दूसरा ऑप्शन गहलोत के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का है. हालांकि, इसकी संभावनाएं कम है. गहलोत के मुख्यमंत्री रहते पार्टी 2 बार चुनाव हार चुकी है.

इसके अलावा गहलोत को अगर कांग्रेस आगे करती है तो गुर्जर समेत कई जातियों के वोट खिसक जाएंगे. 2018 के चुनाव में बीजेपी की परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले गुर्जर समुदाय ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर वोट किया था. राज्य में 30-40 सीटों पर गुर्जर समुदाय का प्रभाव है.

3. पायलट के चेहरे पर चुनाव लड़ना- समझौते के लिए तीसरा ऑप्शन हाईकमान के पास पायलट के चेहरे पर 2023 का चुनाव लड़ना है, लेकिन इस ऑप्शन को न तो गहलोत गुट और ना ही पायलट गुट मानने को तैयार हैं. इसकी वजह 5 साल से चल रही सरकार है.

अगर हाईकमान पायलट को चेहरा घोषित करती है, तो गहलोत के लिए राजनीतिक रास्ता बंद हो जाएगा. वहीं पायलट गुट का कहना है कि सरकार के खिलाफ जो एंटी इनकंबेंसी है, उसका असर होगा.

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