उत्‍तराखंड

उत्तराखंड पंचायत चुनाव: रिटायर्ड आईपीएस आफिसर विमला गुंज्याल बनीं इस गांव की निर्विविरोध प्रधान

इन दिनों उत्तराखंड में पंचायत सीजन 4 सुर्खियों में हैं. फुलेरा ग्राम पंचायत के बैकग्राउंड में बुनी गई इसकी कहानी में कई दिलचस्प मोड़ हैं. पंचायत के चौथे सीजन में ग्राम पंचायत के चुनाव का दंगल दिखाया गया है. कुल जमा पंचायत 4 का सीजन दर्शकाें को हंसाने के साथ ही उनके मन में अपने गांव की तस्वीर और तकदीर बदलने का द्वंद स्थापित करने में सफल रहा है, लेकिन इस द्वंद से इतर रील से निकल कर रियल में कुछ ऐसी ही कहानी ने साकार रूप ले लिया है, जिसमें एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी अपने गांव की प्रधान निर्वाचित हुई हैं. ये असल कहानी उत्तराखंड के पहले गांव गुंजी की है. रिटायर्ड आईपीएस आफिसर विमला गुंज्याल इस गांव की निर्विविरोध प्रधान बनी हैं. आइए जानते हैं कि पूरी कहानी क्या है?

विमला गुंज्याल उत्तराखंड पुलिस में आईजी (विजिलेंस) के पद से रिटायर हुई हैं. उन्होंने 30 साल तक एक पुलिस ऑफिसर के तौर पर यूपी और उत्तराखंड में सेवाएं दी हैं. असल में उन्होंने अविभाजित उत्तर प्रदेश में ही पुलिस सेवा ज्वाइन की थी. अब 30 साल की सेवा के बाद उन्होंने नया और प्रेरणादायक रास्ता चुना है. उन्होंने शहरों की सुविधा और आराम को छोड़कर अपने पैतृक गांव गुंजी की सेवा का संकल्प लिया. गांव वालों ने भी उन्हें निर्विरोध सरपंच चुनकर इस बदलाव की राह आसान बना दी.

रिटायर्ड आईपीएस विमला गुंज्याल ने UPSC परीक्षा पास नहीं की है. वह राज्य पुलिस सेवा (PPS) से प्रमोशन पाकर आईपीएस बनी थीं, लेकिन अपने सेवा कार्य और प्रतिबद्धता से उन्होंने एक उच्च मुकाम हासिल किया. उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है.

पिथौरागढ़ जिले के धारचूला ब्लॉक में स्थित गुंजी गांव भारत-चीन सीमा पर बसा है. यह इलाका सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है. यहां तक पहुंचना आसान नहीं, लेकिन विमला गुंज्याल ने इस कठिन इलाके को ही अपनी कर्मभूमि बनाने का संकल्प लिया है. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गांव में बसने और ग्रामीण विकास में योगदान देने का निश्चय किया. गांव वालों ने भी उनके इस फैसले का भरपूर समर्थन किया. उन्हें निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना गया. अब वे एक नई भूमिका में अपने गांव के विकास के लिए काम कर रही हैं.

विमला गुंज्याल की यह कहानी सिर्फ एक अधिकारी की नहीं, बल्कि उस सोच की मिसाल है जो रिटायरमेंट को आराम का नहीं, जिम्मेदारी निभाने का दूसरा मौका मानती है. उनके इस कदम से यह संदेश भी जाता है कि यदि अनुभवी और ईमानदार लोग आगे आएं, तो गांवों की तस्वीर बदली जा सकती है. गुंजी जैसे सीमावर्ती इलाकों में अनुभवी नेतृत्व का होना सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक मजबूती के लिए भी जरूरी है. विमला गुंज्याल का गांव लौटना सिर्फ एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की नींव भी है.

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