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अब बॉर्नविटा को हेल्थ ड्रिंक की कैटेगरी क्यों नहीं रखा जा सकता है! जानिए पूरी बात

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भारत में कई पीढ़ियां बॉर्नविटा को ‘हेल्थ ड्रिंक’ समझकर पीते-पीते बढ़ी हुई हैं. इसका कारण है देश में जब से बॉर्नविटा लॉन्च हुआ है तब से विज्ञापनों में इसे हेल्थ ड्रिंक के रूप में ही दिखाया गया है. केंद्र सरकार ने सभी ई-कॉमर्स वेबसाइट को अपने प्लेटफॉर्म से बॉर्नविटा को ड्रिंक एंड बेवरेज की हेल्थ ड्रिंक कैटेगरी से हटाने के लिए कहा है.

इससे दो हफ्ते पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बॉर्नविटा को नोटिस जारी किया था. आयोग ने कंपनी से कहा था कि वह अपने सभी गुमराह करने वाले विज्ञापन, पैकेजिंग और लेबल की समीक्षा करे और उन्हें वापस ले.

इस स्पेशल स्टोरी में आप बॉर्नविटा विवाद की पूरी कहानी जानेंगे. साथ ही हेल्थ ड्रिंक के बारें में विस्तार से समझेंगे.

पहले जानिए क्या होता है हेल्थ ड्रिंक
भारत में मॉल्ट से बने पेय पदार्थों को ही आम तौर पर हेल्थ ड्रिंक कहा जाता है. ये पेय पदार्थ दूध के स्वाद को बढ़ाते हैं. इन्हें अक्सर पर पौष्टिक और ऊर्जा देने वाले पेय के रूप में पेश किया जाता है. साथ ही कंपनियां इन प्रोडक्ट्स में तरह-तरह के फ्लेवर और स्वाद भी शामिल करती रहती हैं, जिससे इनकी लोकप्रियता और बढ़ जाती है.

एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में मॉल्ट से बने पेय पदार्थों (Malt Based Drinks) का बाजार बहुत बड़ा है. साल 2009 में ये करीब 2000 करोड़ रुपये का था और माना जा रहा है कि ये आने वाले समय में और भी बढ़ेगा. एक अनुमान के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे बड़ा मॉल्ट बेस्ड ड्रिंक्स मार्केट है. दुनियाभर में होने वाली ऐसी ड्रिंक्स की कुल बिक्री का 22 फीसदी हिस्सा भारत में ही होता है.

दिलचस्प बात ये है कि कई मॉल्ट बेस्ड ड्रिंक्स खुद को ‘हेल्थ ड्रिंक’ के रूप में पेश कर रहे हैं. ये मार्केट की मांग के हिसाब से किया गया बदलाव है, क्योंकि आजकल लोग पहले से ज्यादा अपनी सेहत के प्रति जागरूक हैं और हर कोई ज्यादा स्वस्थ रहना चाहता है.

क्या हेल्थ ड्रिंक की कोई परिभाषा है?
भारतीय कानून में ‘हेल्थ ड्रिंक’ नाम की किसी भी चीज की सही-सही परिभाषा नहीं है. बॉर्नविटा पर केंद्र सरकार का ये आदेश भी इसलिए ही आया. बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने राष्ट्रीय आयोग (NCPCR) ने अपनी जांच में पाया कि असल में कानून में ‘हेल्थ ड्रिंक’ की परिभाषा नहीं है.

सरकारी नोटिस में NCPCR की इस जांच का जिक्र हुआ है. जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि FSSAI (खाने की सुरक्षा देखने वाली संस्था) और बॉर्नविटा बनाने वाली कंपनी Mondelez India, इन दोनों के पास भी कानून के तहत हेल्थ ड्रिंक की कोई परिभाषा बताने को नहीं थी. इसी वजह से सरकार ने अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को ये हिदायत दी है कि वो बॉर्नविटा जैसे पेय पदार्थों को हेल्थ ड्रिंक वाली कैटेगरी में न दिखाएं.

ये फैसला खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की उस मांग के बाद आया है, जिसमें उन्होंने हाल ही में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से ये गुजारिश की थी कि दूध, अनाज और मॉल्ट से बने ड्रिंक्स को हेल्थ ड्रिंक या एनर्जी ड्रिंक न कहा जाए. FSSAI के हिसाब से ये ड्रिंक्स असल में सिर्फ स्वाद वाला पानी है, हेल्थ ड्रिंक नहीं. FSSAI ने ये भी चेतावनी दी थी कि गलत शब्दों के इस्तेमाल से ग्राहक गुमराह हो सकते हैं.

क्या है बॉर्नविटा विवाद?
बॉर्नविटा पर ये सरकारी फैसला एक बड़े विवाद के बाद आया है. ये विवाद तब शुरू हुआ जब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रेवंत हिमतसिंगका ने खुलासा किया कि बॉर्नविटा में चीनी की मात्रा इतनी ज्यादा है कि इसे हेल्थ ड्रिंक कहना गलत है. ये वीडियो पिछले साल 1 अप्रैल को अपलोड किया था जिसमें उन्होंने बताया था कि बॉर्नविटा में कितनी ज्यादा चीनी होती है और यह बच्चों के लिए किस तरह से हानिकारक हो सकता है. उस समय उनके इंस्टाग्राम पर केवल 1000 फॉलोअर्स थे.

फिर भी रेवंत का ये वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो गया. बॉर्नविटा को से काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी. ये मामला इतना बढ़ गया कि बॉर्नविटा बनाने वाली कंपनी Mondelez India को भी इस पर ध्यान देना पड़ा. कंपनी ने रेवंत को कानूनी नोटिस भेज दिया, जिसके बाद उन्हें अपना वीडियो सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से हटाना पड़ा. लेकिन तब तक वह वीडियो व्हाट्सएप ग्रुप्स में फैल चुका था और बड़े टीवी न्यूज चैनल्स की नजर भी उसपर पड़ गई थी.

इसके बाद बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था NCPCR ने मामले में हस्तक्षेप किया. उन्होंने जांच की और पाया कि बॉर्नविटा में चीनी की मात्रा बहुत ज्यादा है. NCPCR ने आदेश दिया कि ब्रांड अपने सभी गुमराह करने वाले विज्ञापन, पैकेज और लेबल को वापस ले. एनसीपीसीआर ने FSSAI से उन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया जो सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहीं और इसके बजाय पाउडर वाला दूध या अन्य चीजों को ‘हेल्थ ड्रिंक’ बताकर बेच रही हैं.

कंपनी ने किया बड़ा बदलाव
दिसंबर 2023 में सोशल मीडिया पर उठाए गए मुद्दे को एक बड़ी जीत मिली. कैडबरी ने अपने बॉर्नविटा चॉकलेट ‘हेल्थ’ ड्रिंक में चीनी की मात्रा को 14.4 फीसदी कम कर दिया. पहले वाले बॉर्नविटा में 100 ग्राम पाउडर में 37.4 ग्राम चीनी होती थी. अब 100 ग्राम पाउडर में 32.2 ग्राम चीनी रह गई. कंपनी की ओर से चीनी की मात्रा कम करने के फैसले के बाद इन्फ्लुएंसर रेवंत हिमतसिंगका ने इंस्टाग्राम पर अपनी ‘बड़ी जीत’ बताया.

उनकी पोस्ट में लिखा था, “बड़ी जीत! शायद इतिहास में पहली बार किसी इंस्टाग्राम रील की वजह से किसी बड़ी खाने-पीने की कंपनी ने अपनी चीनी की मात्रा कम की है. सिर्फ एक वीडियो से चीनी की मात्रा में 15 फीसदी कम हो गई. जरा सोचिए अगर सभी भारतीय खाने वाली चीजों पर लेबल पढ़ना शुरू कर दें तो? कंपनियां खुद को गलत तरीके से पेश करने की हिम्मत नहीं करेंगी.”

अब जानिए बॉर्नविटा की कब और कैसे हुई शुरुआत
बॉर्नविटा बनाने वाली मूल कंपनी का नाम है मॉन्डीलेज. इस कंपनी का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. साल 1824 में जॉन कैडबरी ने इंग्लैंड में अपने नाम ‘कैडबरी’ से ही पहला आउटलेट खोला था. 1905 में डैरी मिल्क चॉकलेट मार्केट में उतारने के बाद से कंपनी की किस्मत बदलने लगी. धीरे-धीरे ये एक ब्रांड बन गया. फिर साल 1920 में कंपनी ने बॉर्नविटा की शुरुआत की और दुनिया के पहले हेल्थ ड्रिंक के रूप में पेश किया.

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के एक साल बाद 1948 में कैडबरी की भारत में एंट्री हुई और उसके बाद जल्द ही बॉर्नविटा भारत में एक ब्रांड बन गया. असल में बॉर्नविटा की पहचान ब्रिटेन के एक गांव से जुड़ी है. बॉर्नविटा की पहली फैक्ट्री बर्मिंघम के गांव Bournville Lane में खोली गई थी. इसी गांव के नाम पर बॉर्नविटा नाम रखा गया था.

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