ताजा हलचल

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची में गड़बड़ी क्या जानबूझ गड़बड़ी की जा रही! 14 पॉइंट्स में समझिये

सांकेतिक फोटो

मतदाता सूची में गडबड़ी को लेकर देशभर में सियासी पारा हाई है. कांग्रेस से लेकर तमाम राजनीतिक दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग की लापरवाही या अनदेखी के चलते वोटर लिस्ट में गड़बड़ी हुई है. वहीं पश्चिम बंगाल में भी मतदाता सूची में गड़बड़ी का मामला लगातार तूल पकड़ रहा है. आइए एक स्टडी रिपोर्ट के जरिए इस मामले पर हुए खुलासे को समझते हैं.

14 पॉइंट्स में इस रिपोर्ट को समझिये आखिर क्यों मतदाता सूची में गड़बड़ी की बात सामने आ रही है

  1. अगस्त 2025 में प्रकाशित एक शोध “Electoral Roll Inflation in West Bengal: A Demographic Reconstruction of Legitimate Voter Counts (2024)” में विद्यु शेखर (एसपी जैन, मुंबई) और मिलन कुमार (आईआईएम विशाखापत्तनम) ने पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची का विश्लेषण किया है.
  2. स्टडी के अनुसार, 2024 की मतदाता सूची में लगभग 1.04 करोड़ अतिरिक्त नाम हैं. यह कुल सूची का 13.69% फर्जीवाड़ा (inflation) है. अध्ययन में जो अनुमान लगाया गया है, वह भी “conservative” यानी सतर्क तरीके से किया गया है. असली गड़बड़ी इससे भी ज्यादा हो सकती है.
  3. 2004 की वोटर लिस्ट को आधार बनाकर यह आकलन किया गया. उस समय राज्य में 4.74 करोड़ वोटर थे. बीस साल बाद, उम्र और मृत्यु दर के हिसाब से देखा जाए तो इनमें से लगभग 1 करोड़ लोग अब जीवित नहीं हैं, लेकिन उनके नाम आज भी सूची में मौजूद हैं.
  4. 1986 से 2006 के बीच जन्मे और 18 साल पूरे करने वाले नए वोटरों को जोड़ने के बाद, और प्रवासन (migration) को घटाने के बाद, 2024 में वैध वोटरों की संख्या 6.57 करोड़ निकलती है. लेकिन चुनाव आयोग की लिस्ट में 7.61 करोड़ वोटर दर्ज हैं. यानी करीब 1.04 करोड़ नाम अतिरिक्त हैं. यह अंतर बहुत बड़ा है और चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है.
  5. इस अध्ययन की खास बात यह है कि इसमें हर जगह सुरक्षित (conservative) अनुमान लगाए गए. नए वोटरों की रजिस्ट्रेशन दर 92.8% मानी गई, जो हकीकत में इतनी ऊंची नहीं होती. यानी असली संख्या और भी कम हो सकती थी.
  6. वहीं, प्रवास (migration) के मामले में भी 2011 के बाद बढ़ते पलायन को नजरअंदाज किया गया. अगर उसे शामिल किया जाता तो मतदाताओं की वास्तविक संख्या और घटती. इसका मतलब यह है कि
  7. 13.69% फर्जी वोटर सिर्फ न्यूनतम आंकड़ा है, हकीकत इससे भी ज्यादा हो सकती है. पश्चिम बंगाल में आखिरी बार वोटर लिस्ट की गहन जांच 2002 में हुई थी. तब से अब तक 22 साल बीत गए और सूची की ठीक से समीक्षा नहीं हुई. इतने लंबे समय में लाखों मृतकों और डुप्लीकेट नामों को हटाया ही नहीं गया.
  8. यह गड़बड़ी अचानक नहीं हुई, बल्कि योजनाबद्ध ढंग से की गई. जिन जिलों में टीएमसी को खतरा था, वहाँ फर्जी वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ाई गई. ऐसे में, अगर वोटर लिस्ट साफ नहीं की गई तो फर्जी नामों का इस्तेमाल कर चुनावी नतीजों को बिगाड़ा जा सकता है. यह लोकतंत्र की आस्था पर सीधा हमला है.
  9. रिपोर्ट में पाया गया कि हजारों नाबालिगों के नाम मतदाता सूची में हैं. वहीं, प्रवासी लोग जो राज्य में रहते ही नहीं, उनके नाम भी वोटर लिस्ट में बरकरार हैं. कई इलाकों में मतदाता संख्या वास्तविक जनसंख्या से भी ज्यादा पाई गई. यह साबित करता है कि वोटर लिस्ट में डेटा-आधारित हेराफेरी हुई है.
  10. अध्ययन और आंकड़े साफ दिखाते हैं कि यह सिर्फ लापरवाही नहीं बल्कि टीएमसी सरकार की सोची-समझी रणनीति है, जिसमें प्रशासन और बूथ स्तर अधिकारी भी शामिल हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में मतदाता संख्या की असामान्य वृद्धि हुई है, जो ममता बनर्जी की वोट बैंक राजनीति की ओर इशारा करती है.
  11. भाजपा लगातार कहती रही है कि बंगाल में free and fair election संभव नहीं. यह स्टडी भाजपा के आरोपों को सही ठहराती है और ममता सरकार की चुनावी साजिश उजागर करती है.
  12. भाजपा का मानना है कि पश्चिम बंगाल में तुरंत Special Intensive Revision (SIR) होना चाहिए. इसमें घर-घर जाकर जांच हो, मृतकों के नाम हटें, और डुप्लीकेट वोटरों को बाहर किया जाए. इसके साथ ही वोटर लिस्ट को आधार कार्ड, जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रेशन और प्रवासन रिकॉर्ड से जोड़ा जाना चाहिए. आधुनिक तकनीक और एल्गोरिदम से फर्जी नामों की पहचान की जा सकती है.
  13. यह सिर्फ बंगाल की समस्या नहीं है. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में भी वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां सामने आती रही हैं. अगर पूरे देश में इस मॉडल से वोटर लिस्ट की जांच शुरू हो जाए तो लोकतंत्र पर जनता का भरोसा और मजबूत होगा.
  14. निष्कर्ष साफ है, बंगाल की वोटर लिस्ट फर्जी नामों से भरी हुई है. यह चुनावी प्रक्रिया और लोकतंत्र दोनों के लिए गंभीर खतरा है. भाजपा इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाकर चुनावों की शुचिता और पारदर्शिता की लड़ाई को और मजबूत करने का प्रयास करती रही है.
Exit mobile version