‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद गृह मंत्रालय ने की मल्टी एजेंसी सेंटर की स्थापना

आंतरिक सुरक्षा को एक नई दिशा देने की ओर एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद गृह मंत्रालय के अधीन एक अत्याधुनिक मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) की स्थापना की है. यह केंद्र देशभर में फैले आतंकी नेटवर्क, साइबर अपराध, नार्को-टेररिज्म, रेडिकलाइजेशन और सीमा पार से होने वाले खतरों पर लगाम कसने के लिए एकीकृत रणनीति तैयार करेगा.

सूत्रों के अनुसार, इस मल्टी एजेंसी सेंटर में लगभग दो दर्जन केंद्रीय एजेंसियों को शामिल किया गया है, जो अपने-अपने विशेष क्षेत्रों में जानकारी साझा करेंगी और समन्वय के साथ कार्य करेंगी.

एजेंसियों की भूमिकाएं तय
CBI: विदेश में छिपे आतंकियों और उनके हैंडलरों को इंटरपोल के माध्यम से ट्रैक करेगी.

ED: टेरर फंडिंग और ड्रग्स, अंडरवर्ल्ड के वित्तीय नेटवर्क की पड़ताल करेगा.

NIA: आतंकी घटनाओं की जांच के अलावा एल्गोरिथ्म बनाकर आपसी कनेक्शन की पहचान करेगी.

SSB: नेपाल और भूटान सीमा पर सक्रिय रहकर खुफिया इनपुट के आधार पर कार्रवाई करेगी.

CRPF: कश्मीर घाटी और भविष्य में आतंक विरोधी अभियानों में कोबरा कमांडो की भूमिका बढ़ सकती है.

BSF: भारत-पाक और बांग्लादेश सीमा की रक्षा के अलावा ड्रोन-विरोधी अभियानों में भी सक्रिय भूमिका निभाएगी.

NSG: विशिष्ट ऑपरेशन में मोस्ट वांटेड आतंकियों को न्यूट्रलाइज करने के लिए तैनात होगी.

ITBP: कश्मीर की पहाड़ी सीमाओं में विशेष अभियानों के लिए ‘हिमवीरों’ की तैनाती पर विचार.

CISF: औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर ड्रोन हमलों की आशंका को देखते हुए एंटी-ड्रोन तकनीक से लैस किया जाएगा.

BPR&D: साइबर सुरक्षा व हाइब्रिड वॉरफेयर के लिए नई तकनीकों का विकास करेगा.

रियल टाइम इंटेलिजेंस का केंद्र बनेगा मल्टी एजेंसी सेंटर
मल्टी एजेंसी सेंटर प्लेटफॉर्म देश की सभी प्रमुख एजेंसियों—IB, RAW, CAPFs की इंटेलिजेंस यूनिट्स और राज्य पुलिस के खुफिया विभागों के साथ मिलकर काम करेगा. किसी भी आतंकी घटना या आपातकालीन स्थिति में रियल टाइम सूचनाओं का आदान-प्रदान होगा और तुरंत फोर्स की तैनाती सुनिश्चित की जाएगी.

डाटा एनालिटिक्स और GIS का होगा उपयोग
मल्टी एजेंसी सेंटर की सबसे बड़ी ताकत इसकी फ्यूचरिस्टिक कैपेबिलिटीज होंगी, जिसमें GIS सर्विसेज, डेटा एनालिटिक्स और टेरेरिस्ट नेटवर्क्स की ट्रेंड मैपिंग शामिल होगी. इससे हॉटस्पॉट की पहचान, समय-आधारित विश्लेषण और ऑपरेशनल प्रेडिक्शन आसान हो सकेगा.

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