क्या एग्जिट पोल सनसनी हैं या वाकई होते हैं विश्वसनीय, क्या होती है इसकी प्रक्रिया, जानिए

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में 05 दिसंबर को शाम 06 बजे के बाद जब चुनाव आयोग मतदान खत्म करने की घोषणा के साथ वोटिंग परसेंटेज की घोषणा करेगा, उसके बाद एग्जिट पोल के अनुमानित नतीजे आने शुरू हो जाएंगे. हालांकि एग्जिट पोल को कुछ लोग सनसनी मानते हैं तो कुछ मानते हैं कि ये वाकई विश्वसनीय होते हैं. ये काफी हद तक बता देते हैं कि चुनावों में क्या होने जा रहा है. ऊंट किस करवट बैठेगा.

वैसे एग्जिट पोल असल में रुझानों के जरिए निष्कर्ष निकालने की कोशिश होती है. लोगों से बातचीत करके अंदाज लगाया जाता है कि नतीजे किधर की ओर जा सकते हैं. इसके जरिए अनुमान लगाया जाता है कि कौन सा सियासी दल कहां जीत रहा है और कौन कहां पीछे होगा. हालांकि इनके खरे उतरने को लेकर हमेशा शक रहा है.

हाल में देश के दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए. हिमाचल प्रदेश में एक चरण के चुनावों में 12 नवंबर को ही वोट डाले जा चुके हैं. वहां विधानसभा में 68 सीटें हैं. जिसमें पिछले चुनावों में बीजेपी ने 45 और कांग्रेस ने 20 सीटें जीती थीं जबकि 03 सीट निर्दलीय के पास गईं.

गुजरात में दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुए. पहले चरण के लिए 01 दिसंबर को वोट डाले गए जबकि दूसरे चरण के लिए 05 दिसंबर को वोट डालने का काम चल रहा है. गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटें हैं, जिसमें फिलहाल 182 सीटों पर बीजेपी का कब्जा था तो कांग्रेस के पास 60 सीटें थीं. अन्य के पास 04 जबकि 08 सीटें खाली थीं.

क्या है एग्जिट पोल को लेकर चुनाव आयोग का नियम
चुनाव आयोग ने नियम बना रखा है कि आखिरी चरण की वोटिंग के पहले एग्जिट पोल के जरिए अनुमानित नतीजों का ट्रेंड नहीं बताया जा सकता. आखिरी चरण की वोटिंग के बाद चुनाव आयोग जब शाम को आधिकारिक तौर पर बतायेगा कि आखिर चरण में कितना मतदान हुआ, उसके बाद टीवी चैनल्स और कुछ समाचार साइट्स एग्जिट पोल के वो नतीजे देने लगेंगे, जो उन्होंने खुद या एजेंसियों के जरिए कराए हैं.

चूंकि एग्जिट पोल की सटीकता पर हमेशा ही सवाल उठते हैं लिहाजा ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये एग्जिट पोल्स क्या होते हैं और चुनाव परिणामों को लेकर वो जो अनुमान लगाते हैं, वो कितने सटीक होते हैं.

1. एग्जिट पोल्स क्या होते हैं और वो कैसे किए जाते हैं?
– एग्जिट पोल्स वोट करके पोलिंग बूथ के बाहर आए लोगों से बातचीत या उनके रुझानों पर आधारित हैं. इनके जरिए अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर है. इसमें बड़े पैमाने पर वोटरों से बात की जाती है. इसे कंडक्ट करने का काम आजकल कई ऑर्गनाइजेशन कर रहे हैं.

2. एग्जिट पोल्स को टेलिकास्ट करने की अनुमति वोटिंग खत्म होने के बाद ही क्यों दी जाती है. इससे पहले क्यों नहीं?
– जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 ए के तहत वोटिंग के दौरान ऐसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए जो वोटरों के मनोविज्ञान पर असर डाले या उनके वोट देने के फैसले को प्रभावित करे. वोटिंग खत्म होने के डेढ़ घंटे तक एग्जिट पोल्स का प्रसारण नहीं किया जा सकता है. और ये तभी हो सकता है जब सारे चुनावों की अंतिम दौर की वोटिंग भी खत्म हो चुकी हो.

3. क्या एग्जिट पोल्स हमेशा सही होते हैं?
– नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है. अतीत में ये साबित हुआ है कि एग्जिट पोल्स ने जो अनुमान लगाए, वो गलत साबित हुए. भारत में एग्जिट पोल का इतिहास बहुत सटीक नहीं रहा है. कई बार एग्जिट पोल नतीजों के बिल्कुल विपरीत रहे हैं.

4. ओपिनियन पोल्स और एग्जिट पोल्स के बीच अंतर क्या है?
– ओपनियन पोल्स वोटिंग से बहुत पहले वोटरों के व्यवहार और वो क्या कर सकते हैं, ये जानने के लिए होता है. इससे ये बताया जाता है कि इस बार वोटर किस ओर जाने का मन बना रहा है. वहीं एग्जिट पोल्स हमेशा वोटिंग के बाद होता है.

5. ये कब शुरू हुए?
माना जाता है कि ये 1967 में सामने आए. एक डच समाजशास्त्री और पूर्व राजनीतिज्ञ मार्सेल वान डेन ने देश में चुनाव के दौरान एग्जिट पोल्स किया. हालांकि ये भी कहा जाता है कि इसी साल अमेरिका में ऐसा पहली बार एक राज्य के चुनावों के दौरान किया गया था. वैसे एग्जिट पोल्स जैसे अनुमान की बातों का 1940 में होना कहा जाता है.

6. इनका विरोध क्यों होता रहा है?
– क्योंकि आमतौर पर ये न तो बहुत वैज्ञानिक होते हैं और न ही बहुत ज्यादा लोगों से बातकर उसके आधार पर तैयार किए जाते हैं. इसीलिए अमूमन ये हकीकत से अक्सर दूर होते हैं. कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है. भारत में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी थी. दुनियाभर में अब ज्यादातर लोग इन्हें विश्वसनीय नहीं मानते.

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