आप नया घर या जमीन खरीदने की सोच रहे हैं, तो अब केवल रजिस्ट्री करवा लेना ही काफी नहीं होगा. जी हां अब आपको लगता है कि आपके पास घर की रजिस्ट्री है तो आप घर के मालिक हो गए तो ऐसा नहीं है. अप्रैल 2025 में ही देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले ने प्रॉपर्टी खरीदने वालों की सोच और प्रक्रिया दोनों में बदलाव कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि केवल रजिस्ट्री होना मालिकाना हक का सबूत नहीं है, बल्कि मालिकाना हक साबित करने के लिए और भी कई दस्तावेज और कानूनी औपचारिकताएं जरूरी हैं. आइए जानते हैं कि वह कौनसे दस्तावेज हैं जो आपको संपत्ति का मालिक बनाएंगे.
क्या था मामला?
यह फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना केस में प्रकाश में आया था. मामला 1982 में एक को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की ओर से अनरजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट के ज़रिए जमीन खरीदने से जुड़ा था.
यह जमीन आगे कई बार बिकी, लेकिन शुरुआत में रजिस्ट्री न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली डील अगर वैध नहीं थी, तो उसके आधार पर आगे की गई सारी रजिस्ट्री भी कानूनी ओनरशिप नहीं मानी जाएगी.
रजिस्ट्री क्या करती है और क्या नहीं?
रजिस्ट्री केवल यह दर्शाती है कि किसी प्रॉपर्टी डील को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है. यह लीगल ट्रांजैक्शन का सबूत होती है, लेकिन ओनरशिप का अंतिम प्रमाण नहीं. अगर शुरुआती मालिक के पास ही क्लियर टाइटल नहीं था, तो आगे किसी के पास रजिस्ट्री हो, वह लीगल मालिक नहीं माना जाएगा.
इस फैसले का असर आप नया घर या जमीन खरीदने की सोच रहे हैं, तो अब केवल रजिस्ट्री करवा लेना ही काफी नहीं होगा. जी हां अब आपको लगता है कि आपके पास घर की रजिस्ट्री है तो आप घर के मालिक हो गए तो ऐसा नहीं है. अप्रैल 2025 में ही देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले ने प्रॉपर्टी खरीदने वालों की सोच और प्रक्रिया दोनों में बदलाव कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि केवल रजिस्ट्री होना मालिकाना हक का सबूत नहीं है, बल्कि मालिकाना हक साबित करने के लिए और भी कई दस्तावेज और कानूनी औपचारिकताएं जरूरी हैं. आइए जानते हैं कि वह कौनसे दस्तावेज हैं जो आपको संपत्ति का मालिक बनाएंगे
- सेल डीड और टाइटल डीड
- एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट (कोई लोन या क्लेम तो नहीं)
- म्युटेशन सर्टिफिकेट (नामांतरण)
- प्रॉपर्टी टैक्स की रसीदें
- पजेशन लेटर और एलॉटमेंट लेटर
- सक्सेशन सर्टिफिकेट या वसीयत (विल)
- रियल एस्टेट सेक्टर पर असर
इस फैसले का असर रियल एस्टेट सेक्टर पर साफ देखा जा सकता है. अब डेवलपर्स और ब्रोकर को प्रॉपर्टी की पूरी ओनरशिप चेन को सत्यापित करना होगा. इससे लीगल जांच लंबी, प्रक्रिया जटिल और खर्च अधिक हो सकता है. ग्राहकों को भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले टाइटल वेरिफिकेशन और लीगल कंसल्टेशन कराना आवश्यक हो गया है.
अब सिर्फ लोकेशन और दाम नहीं, दस्तावेज भी देखें
यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाले समय में रियल एस्टेट डील्स को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के मकसद से लिया गया है. लेकिन इसके लिए खरीदारों को अधिक सतर्क और जागरूक रहना होगा. अब प्रॉपर्टी खरीदने से पहले केवल रजिस्ट्री नहीं, बल्कि मालिकाना हक से जुड़े हर दस्तावेज की बारीकी से जांच जरूरी होगी. रियल एस्टेट सेक्टर पर साफ देखा जा सकता है. अब डेवलपर्स और ब्रोकर को प्रॉपर्टी की पूरी ओनरशिप चेन को सत्यापित करना होगा. इससे लीगल जांच लंबी, प्रक्रिया जटिल और खर्च अधिक हो सकता है. ग्राहकों को भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले टाइटल वेरिफिकेशन और लीगल कंसल्टेशन कराना आवश्यक हो गया है.