मध्य प्रदेश में साइबर अपराध ने सुनियोजित रूप में भारी आर्थिक नुकसान किया है, जिसमें पोस्टेड रिपोर्ट के अनुसार लगभग ₹1,054 करोड़ सिक्योरिटी-रहित डिजिटल धोखाधड़ी के कारण खो गए और केवल ₹1.94 करोड़ ही घुमा पाए गए हैं। मुख्य रूप से ‘डिजिटल अरेस्ट’ स्कैम, प्रतिभूति ट्रेडिंग और फर्जी निवेश रैकेट शामिल हैं।
राज्य विधानसभा में दिए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2023 और 2024 में डिजिटल ढोंग के तहत मध्य प्रदेश में ₹150 करोड़ से अधिक की रकम लूटी गई थी। उस अवधि में 26 ‘डिजिटल अरेस्ट’ मामलों में ₹12.60 करोड़ से अधिक की वसूली हुई, लेकिन सिर्फ़ ₹72.38 लाख (≈ 5.7%) ही वापस मिल सके।
साथ ही, 520 + ऑनलाइन फ्रॉड केस दर्ज हुए, जिनमें से 2024 में ₹93.60 करोड़ की ठगी हुई — ये राशि 2023 की ₹44.26 करोड़ से लगभग 111% अधिक थी। रिकवरी रेट सिर्फ 9% तक सीमित रही।
राज्य के मैजिस्ट्री से डेटा बताते हैं कि हर घंटे लगभग 8 साइबर क्राइम की शिकायत हो रही है — जनवरी से जून 2025 के बीच कुल 34,021 मामले, यानी लगभग 189 घटना प्रति रोज। यह चार वर्षों में साइबर मामलों की संख्या में लगभग 900% की वृद्धि दर्शाता है।
इस संकटपूर्ण स्थिति में जागरूकता बढ़ाने हेतु पुलिस, MPSTF और I4C की ओर से सिम कार्ड ब्लॉकिंग, IMEI मोदीकरण और ‘Pratibimb’ मॉड्यूल के ज़रिये गिरोहों का ट्रैकिंग किया जा रहा है। लेकिन सच यह है कि बेसिक साइबर सुरक्षा अभियानों के बावजूद जब तक रिकवरी बेहतर नहीं होती, उपयोगकर्ताओं को सतर्क रहने की आवश्यकता बनी रहेगी।