संसद हमले की 20वीं बरसी: लोकतंत्र की रक्षा और मंत्रियों-सांसदों को बचाने के लिए सुरक्षाबलों ने लगा दी थी जान की बाजी

आज एक ऐसी तारीख है जो ठीक 20 वर्ष पहले लोकतंत्र के मंदिर और सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली बिल्डिंग संसद भवन पर हमले की याद दिलाती है. सफेद रंग की एंबेसडर कार से आए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने चंद मिनटों में ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार से पूरे संसद भवन को हिला कर रख दिया. टीवी पर हमले की खबर चलते ही पूरा देश सकते में आ गया था. हमलावर अपने मंसूबों पर सफल हो पाते उससे पहले ही हमारे मुस्तैद जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर सभी को ढेर कर दिया और लोकतंत्र के मंदिर पर आंच नहीं आने दी.

उस हमले के गवाह बने केंद्रीय मंत्री और सांसद अभी भी उस पार्लियामेंट हमले को भूल नहीं पाए हैं. आज 13 दिसंबर है, आइए आपको ठीक 20 वर्ष पीछे लिए चलते हैं. साल 2001 संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था. अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी. उस दिन सदन की कार्यवाही अभी शुरू ही हुई थी कि विपक्ष के हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्षी नेता सोनिया गांधी अपने आवास की ओर प्रस्थान कर चुके थे लेकिन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत देश के तमाम बड़े नेता उस वक्त संसद में ही थे.

तभी सुबह 11 बजकर 28 मिनट के करीब एक सफेद एम्बेसडर कार संसद भवन परिसर में गेट नंबर 12 से दाखिल हुई. कार के ऊपर लाल बत्ती लगी थी और गृह मंत्रालय का स्टीकर लगा था. संसद परिसर में कार की स्पीड तेज होने पर संसद भवन की सुरक्षा में तैनात गार्ड जगदीश यादव को कुछ शक हुआ. उधर, 11 बजकर 29 मिनट पर गेट नंबर 11 पर तत्कालीन उप राष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी उनके निकलने का इंतजार कर रहे थे. तभी वह कार उपराष्ट्रपति की कार के काफिले की तरफ बढ़ी. सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव तभी उस कार के पीछे दौड़ते-भागते आए.

वो कार को रुकने का इशारा कर रहे थे लेकिन कार चालक अपनी धुन में था. जगदीश यादव को दौड़ता भागता देख उप राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी अलर्ट हो गए. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीत राम, नानक चंद और श्याम सिंह ने उस सफेद कार को रोकने की कोशिश की लेकिन कार नहीं रुकी और उप राष्ट्रपति के काफिले की कार को टक्कर मार दी.

–शंभू नाथ गौतम

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