Bombay High Court ने मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में सत्र-न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। ये ब्लास्ट 11 जुलाई 2006 को मुंबई के वेस्टर्न लोकल ट्रेन नेटवर्क में सात स्थानों पर हुए थे, जिनमें 180 से अधिक लोगों की मौत हुई और लगभग 800 लोग घायल हुए।
2015 में एक विशेष MCOCA अदालत ने इन 12 आरोपियों में से पांच को फाँसी और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालाँकि, हाई कोर्ट की बेंच—न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चंदक—ने आज फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन ने आरोपियों के विरुद्ध “पूरी तरह विफल” रहा और साक्ष्य पर्याप्त नहीं था। इस प्रकार, सभी दोषी ठहराए गए आरोपियों की सजा रद्द करते हुए उन्हें निर्दोष घोषित किया गया है।
इस निर्णय के बाद यदि आरोपियों पर किसी अन्य मामले में कोई मुकदमा लंबित नहीं है, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाएगा। इस सुनवाई में जांच और ट्रायल की प्रक्रियाओं में आई गंभीर त्रुटियों पर भी न्यायालय ने प्रकाश डाला, जिससे न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता दोबारा सामने आई है।
19 साल बाद मिली इस बरी — निर्णायक और राहत देने वाली है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाता है कि क्या बेहतर जांच‑प्रक्रिया से इन निर्दोष आरोपियों के जीवन को इतना लंबे समय जेल में बिताना ही पड़ता।