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गंगा दशहरा आज: दान-पुण्य और मोक्ष प्राप्ति के लिए जाना जाता है ‘गंगा पर्व’, स्नान करने घाटों पर उमड़े श्रद्धालु

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देश में गंगा दशहरा धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस दिन गंगा में स्नान और दान करने की परंपरा है. आज मां गंगा का दिन है. यह ‘गंगा पर्व’ के रूप में भी मनाया जाता है. ‌पौराणिक मान्यता है कि जीवनदायिनी गंगा आज ही के दिन धरती पर अवतरित हुईं थीं. हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी और प्रयागराज आदि स्थानों पर सुबह से ही गंगा में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा हुआ है. इसके लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों ने गंगा घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था के मजबूत प्रबंध किए हैं. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से जन्म-जन्मांतक के पाप धुल जाते हैं.

इसीलिए इस दिन गंगा स्नान का धार्मिक महत्व काफी बढ़ जाता है. कहा जाता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही इस दिन मंगल कार्य या फिर पूजा अनुष्ठान करना भी बेहद शुभ माना जाता है. गंगा दशहरा की दशमी तिथि गुरुवार सुबह 8 बजकर 23 मिनट से लेकर शुक्रवार, 10 जून को सुबह 7 बजकर 27 मिनट तक रहेगी. इस बीच शुभ घड़ी में आप किसी भी समय आस्था की डुबकी लगा सकते हैं.

गंगा दशहरा पर आज चार शुभ योगों का बन रहा है महासंयोग

आज गंगा दशहरा पर चार शुभ योग का महासंयोग का निर्माण भी बन रहा है, जो बेहद ही फलदाई माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक आज वृषभ राशि में सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग बन रहा है. साथ ही गुरु, चंद्रमा और मंगल का दृष्टि संबंध होने के कारण महालक्ष्मी और गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है. इसके अलावा पूरे दिन रवि योग रहेगा. ऐसे में इन चार शुभ संयोगों में स्नान और दान का महत्व काफी बढ़ गया है‌. इस दिन गंगा नदी के किनारे जाकर पूजा और आरती करनी चाहिए. इस दिन शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से बीमारियां दूर होती हैं और उम्र बढ़ती है. वहीं शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करने से महापुण्य मिलता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है. गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है. गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए. गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है.

राजा भागीरथ के कठोर तपस्या के बाद मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी

पौराणिक कथा के अनुसार राजा भागीरथ ने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या की थी. उसके बाद गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं. बता दें कि राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों को मुक्ति प्रदान करने के लिए गंगा के जल में तर्पण करना था. लेकिन उस वक्त गंगा माता केवल स्वर्ग में ही निवास करती थीं. मां गंगा को धरती पर लाने के लिए हिमालय की तरफ चले गए और कठोर तपस्या करने लगे. भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा देवी ने धरती पर आने की विनती स्वीकार कर ली. लेकिन उस समय भी एक परेशानी यह थी कि गंगा नदी का वेग बहुत ज्यादा होने के कारण यदि वह धरती पर एक भी कदम रखती तो विनाश हो सकता था. राजा भागीरथ को जब इस बात का पता चला कि भगवान शिव ही केवल गंगा के वेग को संभाल सकते हैं तो फिर वह भोलेनाथ की तपस्या में लीन हो गए.

एक साल तक राजा भागीरथ पैर के अंगूठे के सहारे खड़े होकर ही भगवान शिव की तपस्या करते रहे. तब राजा की तपस्या से खुश होकर भोलेनाथ ने गंगा को धरती पर लाने की उनकी विनती स्वीकार कर ली. इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की धारा को प्रवाहित किया. तब जाकर गंगा नदी पहली बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं. फिर राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगा जल से तर्पण करके उन्हें मुक्ति दिलाई.

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