भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 अरब पार, लेकिन कुल प्रजनन दर 2.1 से गिरकर 1.9 पर आ गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर से कम है। हालिया रिपोर्ट में यूएनएफपीए ने स्पष्ट किया कि यह असल ‘जनसंख्या-आंकड़ों’ की समस्या नहीं, बल्कि “अप्राप्त प्रजनन लक्ष्य” की वास्तविक समस्या है—लोग अपने बच्चे पैदा करने की इच्छा के अनुरूप रुकवा नहीं पा रहे ।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की कार्य-योग्य आबादी (15–64 वर्ष) 68 प्रतिशत के आसपास है, जबकि 0–14 आयु वर्ग में लगभग 24 प्रतिशत हैं। जीवन प्रत्याशा 71 (पुरुष) और 74 (महिला) वर्ष तय की गई है । यह आंकड़े भारत को महत्वपूर्ण ‘जनसांख्यिकीय लाभ’ के अवसर प्रदान करते हैं, मगर साथ ही यह चेतावनी भी देते हैं कि यदि रोजगार और नीतिगत समर्थन न मिला, तो यह लाभ खो भी सकता है।
इतिहास में भारत ने 1970 में लगभग 5.1 बच्चों की प्रजनन दर से गिरावट पर काम किया—आज यह महज 1.9 पर आकर संतुलन की कगार पर है । रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य गड़बड़ी “प्रजनन एजेंसी”—यानी व्यक्ति की बंदे-बिना दबाव के रे उत्पादक विकल्प चुनने की क्षमता—में है ।