“न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद में न बदले”: भारत के मुख्य न्यायाधीश की दो टूक चेतावनी

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक अहम बयान देते हुए कहा कि न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) को लेकर संतुलन बनाए रखना बेहद ज़रूरी है, ताकि यह लोकतंत्र को सशक्त करने वाला माध्यम बना रहे, ना कि न्यायिक आतंकवाद (Judicial Terrorism) का रूप ले ले।

मुख्य न्यायाधीश ने यह बात एक विधिक सम्मेलन में बोलते हुए कही, जहां उन्होंने न्यायपालिका की भूमिका, अधिकारों की मर्यादा और संविधान की मूल भावना पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अदालतों को अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए हस्तक्षेप करना चाहिए, विशेष रूप से जब यह नीति-निर्माण और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा हो।

CJI चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि जब अदालतें अपनी शक्तियों का अंधाधुंध प्रयोग करती हैं, तो यह लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा बन सकता है। न्यायपालिका को जनता के अधिकारों की रक्षा करनी है, लेकिन यह कार्य संविधान के दायरे में रहकर ही होना चाहिए।

उनके इस बयान को न्यायिक संतुलन और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संदेश के रूप में देखा जा रहा है, जो न्यायपालिका और अन्य अंगों के बीच स्वस्थ समन्वय बनाए रखने पर बल देता है।

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