जानिये क्या है उत्तराखंड में मकर संक्रांति का महत्व

हिन्दू धर्म में साल का पहला त्यौहार मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है जो की पूरी तरह से सूर्य देव को समर्पित है।

हालांकि यह त्यौहार अलग अलग राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे गुजरात में मकर संक्रांति को लोग उत्तरायण के नाम से जानते हैं तो राजस्थान, बिहार और झारखंड में इसे सकरात कहा जाता हैं। लेकिन आज हम बाते करेंगे देव भूमि के नाम से प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड की।

उत्तराखंड में मकर संक्रांति घुघुतिया के रूप में मनाई जाती है। घुघुतिया के दिन सुबह उठ कर नहाना जरूरी होता है जिसके बाद घर के बच्चों द्वारा जोर जोर से आवाज लगा कर काले कौवे को बुलाया जाता है। और काले कौवा काले घुघुतिया माला खाले कह कर, कौवे को घुघुतिया खिलाया जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह कौवे को इतना महत्व क्यू दिया जाता है?

इस त्यौहार के अनुसार बात उन दिनों कि है जब कुमाऊ मे चंद वंश के राजा राज करते थे, राजा कल्याण चंद कि कोई संतान नहीं थी, और न ही कोई उत्तराधिकारी। ऐसे में राजा का मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मेरा हो जाएगा।

एक दिन राजा संतान प्राप्ति के लिए बागनाथ मंदिर मे गए, जिसके बाद उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम निर्भय चंद रखा गया। निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुती के नाम से बुलाया करती थी। घुघुती के गले मे एक मोती कि मल हुआ करती थी जिसमे घुंघरू लगे हुए थे।

घुघुती को वह माला बहुत पसंद थी, और जब कभी घुघुती किसी बात के लिए माँ से जिद्द करता को माँ कहती, अगर तुम जिद्द करोगे तो मैं ये माला कौवे को दे दूँगी। घुघुती को डराने के लिए माँ कहती काले कौवा काले घुघुती माला खाले।
ये सुन कर कौवे आ जाए, कौवों को आता देख घुघुती भी जिद्द करना छोड़ देता, और माँ कौवों को कुछ खाने को दे देती. ऐसे ही धीरे धीरे घुघुती कि कौवों के साथ दोस्ती होगई।

उधर मंत्री जो राज्य का सपना देख रहा था घुघुती को मरवाने कि सोचने लगा. एक दिन घुघुती महल से बाहर खेल रहा था तब मंत्री उससे उठा कर ले गया। जब वह घुघुती को जंगल कि और लेजा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया। और जोर जोर से काव काव करने लगा।

कौवे कि आवाज सुन कर घुघुती जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा । इतने में बहुत से कौवे वहां आ गए और मंत्री व उसके साथी के ऊपर मंडराने लगे। जिसके बाद एक कौवा घुघुती के हाथ से माला झपट कर ले गया । सभी कौवों ने मंत्री और उसके साथियों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद वे लोग वहा से भाग गए।

अब घुघुती जंगल मे अकेला रह गया परंतु कौवों ने उसका साथ न छोड़ा जिस पेड़ के नीचे घुघुती बैठा था कौवें भी उस पेड़ पर बैठ गए।

जो कौवा माला ले कर गया था वह सीधा महल पहुचा व उसने माला एक पेड़ पर डाल दी और जोर जोर से रोने लगा। जब लोगों कि नजर कौवे पर पड़ी तो कौवें ने माला घुघुती कि माँ के सामने डाल दी। जिसके बाद कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा।

जिसके बाद राजा और उसके घुड़सवार उसके पीछे लग गए, और कावा उस पेड़ पर पहुंचा जहां घुघुती बैठा था जिसके बाद घुघुती को लेकर सब घर आ गए। घर आते ही माँ ने घुघुती को गले लगाया और माला को देखते हुए कहा आज ये माला नहीं होती तो शायद घुघुती भी जिंदा न रहता ।

राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुती के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुती से कहा ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुला कर खिला दो। घुघुती ने कौवों को बुला कर खाना खिलाया।

यह बात धीरे धीरे पूरे कुमाऊ में फैल गई। जिसके बाद इस घटना ने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया। जिसके बाद हर साल मकर संक्रांति को घुघुतिया के रूप मे मनाया जाता है।

टीम उत्तरांचल today कि और से आप सभी को मकर संक्रांति कि हार्दिक शुभकांनाए, आप से फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए नमस्कार ।

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