Home उत्‍तराखंड जानिये आखिर क्यों? देवभूमि उत्तराखंड का लोक पर्व भिटौली है इतना ख़ास

जानिये आखिर क्यों? देवभूमि उत्तराखंड का लोक पर्व भिटौली है इतना ख़ास

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देवभूमि उत्तराखंड का लोक पर्व भिटौली जिसका का शाब्दिक अर्थ है भेंट करना। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में प्रत्येक वर्ष चैत्र महीने में पिता या भाई अपनी बहन या बेटी के लिए भिटौली लेकर उसके ससुराल जाता है।
बता दे कि पहाड़ी अंचल में आज भी महिलाओं को भिटौली दी जाती है। यदि देखा जाए तो उत्तराखंड में एक बहुत महत्वपूर्ण विशेषता है कि यहां प्रत्येक महीने में कोई न कोई त्यौहार अवश्य होता है या कभी महीने में तीन या चार त्यौहार भी होते हैं।

हालांकि प्रत्येक त्योहार के पीछे एक न एक लोक कथा अवश्य जुड़ी होती है। इन्हीं त्योहारों में एक है भिटौली।
चैत के महीने को भिटौली महीना या काला महीना भी कहते हैं। अभी एक धारणा यह भी है की 8 दिन तक इस महीने का नाम उच्चारण नहीं किया जाता है। यदि किसी कुमाऊनी व्यक्ति से आप पूछोगे यह कौन सा हिंदी महीना है तो जवाब मिलेगा काला महीना।

इसी के साथ पंडित लोग भी काला महीना लगने के बाद 8 दिन तक महीने का नाम उच्चारण नहीं करते है। क्योंकि पंडित लोगों को यजमान के यहां पूजा संकल्प कराते समय तिथि मास आदि का नाम उच्चारित करना होता है।
बता दे कि ऐसी स्थिति में पंडित चैत्र मास के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष नाम कह कर मधु मासे शुक्ल पक्ष से उच्चारण करते हैं। हालांकि पंडित एवं कन्याओं को महीने का नाम उच्चारण करने का कोई दोष नहीं होता है इसके बावजूद भी वह महीने का नाम उच्चारित नहीं करते हैं।
आपको बता दे कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी नौमी तिथि मधुमास पुनीता कहा है, अर्थात भगवान राम जन्म चैत्र मास न कह कर मधुमास कहा गया है, खैर जो भी है, आज बदलते आधुनिक युग ने भटौली की परिभाषा ही बदल दी है, आज के समय में भाई को बहिन के घर भटौली देने के लिए समय नहीं है, दोस्तों के साथ पार्टी के लिए समय है , परन्तु बेचारे के पास जरा सी परंपरा निभाने के लिए समय नहीं है, बस घर बैठे ही बहिन के खाते में पैंसे स्थानांतरित कर दीजिए या इससे भी और आसान है गुगल पे कर दीजिए बटन दबाया हो गया काम, फिर यह भिटौली त्योहार कहां रह गया यह तो नया त्यौहार बन गया गूगलिया त्यौहार।

सीधे शब्दों में कहें तो दूरसंचार के माध्यम से लोगों की बीच की दूरी को घटा दिया है। अब आपको पूड़ी, पुवे, खजूरे वस्त्र फल मिठाईयाँ आदि से भरी टोकरी ले जाते हुए लोग नहीं के बराबर मिलेंगे। आज से कुछ वर्षों पूर्व तक मैंने ऑर्डर सिस्टम था जिसमें बहन बेटी को मनीआर्डर के द्वारा पैसे भेजे जाते थे। वह सिस्टम भी पुरापाषाण काल मध्य पाषाण काल आदि की तरह इतिहास के पन्नों में सिमट के रह गया अब नया सिस्टम गूगल पे वाला हो गया।

उत्तराखंड के सभी भाइयों से विनम्र निवेदन है की भाइयों रिश्ते भावनाएं यह सब पैसे की भूखी नहीं होती है। भेंट से मतलब है भिटौली का अर्थ ही वही है। बहन बेटी कितनी आस लगाए बैठी रहती है कब मायके से भिटौली आएगी इसी संबंध में एक लोक कथा है कुमाऊनी लोक कथा है जिस का हिंदी रूपांतरण किया गया है।
उत्तराखंड के हर गांव घर घर में बूढ़े बड़े शौक से यह कथा सुनाते थे खासकर इस महीने। अब कहां बड़ों को सुनाने का समय और छोटों को सुनने का समय। भिटौली की कथा भाई बहन के अथाह प्यार से जुड़ी है कहा जाता है कि देबुली नाम की एक बहन नरिया नाम के भाई से बहुत प्यार करती थी ।

लेकिन जब बहन की शादी दूसरे गांव में हो गई तब वह चेत्र का महीना लगते ही अपने भाई का इंतजार करने लगी कुछ खाए पिए बिना वह इंतजार करने लगी कई दिन बीत गए किसी कारणवश नरिया नहीं आया ।

कुछ दिन देर से नरिया उसके घर आया देबुली उसका इंतजार करते-करते सो गई थी देबुली को सोते हुए देखकर नरिया अपने साथ लाया सामान पकवान खजूरए फल मिठाइयां आदि देवली के पास रखकर उसे प्रणाम कर वापस अपने घर वापस चला गया क्योंकि अगले दिन शनिवार था हमारे पहाड़ में कहते हैं ” छनचर छाड मंगव मिलाप ” अर्थात शनिवार को न किसी के घर जाते हैं और न किसी के घर से आते हैं और मंगलवार को न किसी से मिलते हैं।
यह अपशकुन माना जाता है। इसलिए नरिया उसी दिन घर वापस चला गया। परंतु जब बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास रखा सामान देखा और उसे एहसास हुआ कि जब वह सोई थी तो उसका भाई आया और उससे मिले बिना कुछ खाए पिए भूखा प्यासा वापस चला गया। इस वजह से वह बहुत दुखी हुई और पश्चाताप से भर गई और एक ही रट लगी रहती थी ” भै भूखो में सिती भै भुखो मैं सिती ” अर्थात भाई भूखा ही चला गया और मैं सोई रह गई। इसी दुख में उसके प्राण चले गए और अगले जन्म में वह एक चिड़िया के रूप में पैदा हुई और कहा जाता है कि वह इस मास में आज भी जोर जोर से गाती है ” भै भूखो मैं सिती भै भूखो मैं सिती ” जिसे इस महीने आप आराम से सुन सकते हैं।
धन्यवाद लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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