सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विशेष तीव्र संशोधन (SIR) प्रक्रिया को जारी रखने की इजाज़त दी है, लेकिन चुनाव आयोग को आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को वैध पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आयोग इन दस्तावेज़ों को आधार बनाकर नाम रोकने का निर्णय लेता है, तो उसकी मंशा के पीछे कारण बताना ज़रूरी होगा। अदालत ने कहा कि इन दस्तावेज़ों की सूची “निरपेक्ष नहीं है” इसलिए उन्हें अवश्य विचार में लिया जाना चाहिए ।
कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि (1) इनके पास वोटर लिस्ट संशोधन का अधिकार है या नहीं, (2) प्रक्रिया का सही तरीका क्या है, और (3) इतनी सीमित समय में यह कार्य क्यों शुरू किया गया जब बिहार चुनाव नवंबर में होने हैं ।
कोर्ट ने इस विवाद को आगे सुनवाई योग्य माना है और अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की है। चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा गया है, जबकि संशोधित मतदाता सूची 1 अगस्त को सार्वजनिक होगी ।
इस प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों ने चिंता जताई है कि यह गरीबों और प्रवासियों को वोटर सूची से बाहर कर सकता है क्योंकि साधारण पहचान दस्तावेज़ (आधार, राशन कार्ड, MNREGA कार्ड) को शामिल नहीं किया जाना असमानता दर्शाता है ।