Home उत्‍तराखंड भिटौली विशेष: आइये जानते है उत्तराखंड में भिटौली का महत्व…

भिटौली विशेष: आइये जानते है उत्तराखंड में भिटौली का महत्व…

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भिटौली पर विशेष , भिटौली का शाब्दिक अर्थ है भैंट करना उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल में हर वर्ष चैत महिने में पिता या भाई अपनी बहन या बेटी के लिए भिटौली लेकर उसके ससुराल जाता है, पहाडी अंचल में आज भी महिलाओं को भिटौली दी जाती है.

देखा जाए तो उत्तराखण्ड में एक बहुत महत्वपूर्ण विशेषता है कि यहाँ हर महीने कोई न कोई त्योहार होताहै, कभी महिने में दो या फिर तीन त्योहार होते हैं, और हर त्योहार के पीछे एक न एक लोक कथा जुडी होती है, इन ही में एक है भिटौली फूल देई संक्रांति के दिन से चैत्र का महिना शुरू होता है, इसे भिटौली महिना या काला महिना भी कहते हैं अभी एक धारणा यह है कि आठ दिन तक इस महिने का नाम उच्चारित भी नहीं किया जाता है.

किसी पहाड़ी व्यक्ति से यदि आप पूछ बैठोगे तो जबाब मिलेगा काला महिना पंडित जी लोग भी कहते हैं मधुमास क्युकि पंडित जी लोगों को तो यजमानों के यहां संकल्प करवाने में महिने तिथि का उच्चारण पर चैत्र शुक्ल पक्ष की जगह मधुमासे शुक्ल पक्षे उच्चारण करना है,गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी नौमि तिथि मधुमास पुनीता कहा है, खैर जो भी है, आज बदलते आधुनिक युग ने भिटौली की परिभाषा ही बदल डाली.

आज भाई को बहिन के यहाँ भिटौली देने के लिए समय नहीं है चार दोस्तों के साथ पार्टी के लिए समय है, मुवाइल फोन में पपजी खेलने के लिए समय है, बेचारे के पास थोड़ी सी परंपरा निभाने के लिए समय नहीं है, बस घर बैठे ही खाते में पैसे स्थानांतरित करदो या और आसान गुगल पे करदो बटन दबाया हो गया काम, अब ये भिटौली कहाँ रह गया ये तो अब कोई नया बन गया, गुगलिया त्योहार, सीधे शब्दों में कहै तो दूर संचार के माध्यम ने लोगों की बीच की दूरी को घटा दिया है, आपको अब पूड़ी पुवे खजूरे , फल मिठाई वस्त्र आदि से भरी टोकरी ले जाते हुए लोग नहीं के बराबर मिलंगे .

कुछ वर्षों पहले मनि आर्डर सिस्टम था वह भी पुरा पाषाण काल मध्य पाषाण काल आदि की तरह इतिहास के पन्नों में सिमटता गया, मेरा उत्तराखण्ड के भाईयों से न्म निवेदन है कि भाईयो रिस्ते, भावनायें, ये सब पैसे की भूखी नहीं होते, भैंट से मतलब है बहिन बेटी कितनी आस लगाए बैठे रहती है, कब मायके से भिटौली आयेगी, इसी संबंध में एक लोक कथा कुमाऊनी लोक कथा है जिसका हिन्दी रूपांतरण किया गया है .

उत्तराखण्ड के हर गाँव घर घर में बड़े बूढ़े बडे़ शौक से ये कथा सुनाते थे खासकर इस महिने, अब कहाँ बढौँ को सुनाने का समय छोटे को सुनने का समय, भिटौली की कथा भाई बहन के अथाह प्यार से जुड़ी है, कहा जाता है कि दे बुली नाम की एक बहिन नरिया नाम के भाई से बहुत प्यार करती थी.

लेकिन जब बहिन की शादी दूसरे गाँव में हो गयी तब वह चैत्र का महिना लगते ही अपने भाई का इन्तजार करने लगी कुछ खाये पिये सोये बिना वह इन्तजार करने लगी ऐसे कई दिन बीत गये किसी कारण वश नरिया नहीं आया कुछ दिन देरी से नरिया उसके घर आया देबुली उसका इन्तजार करते करते सोगयीथी देबुली को सोती हुई देखकर नरिया अपने साथ लाया सामान पकवान उपहार खजूरे आदि देबुली के पास रख कर उसे प्रणाम कर वापस अपने घर चला गया क्योंकि अगले दिन शनिवार था

हमारे पहाड में कहते हैं छनचर छाड मंगव मिलाप अर्थात शनिवार को न किसी के घर जाते हैं न किसी के घर से आते हैं और न मंगल वार को किसी से मिलते हैं,ये, अपशकुन माना जाता है, इसीलिए नरिया घर वापस चला गया, लेकिन जब बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास रखा सामान देखा और उसे ऐहसास हुआ कि जब वह सोई थी तो उसका भाई आया और उससे मिले बिना कुछ खाये पिये भूखा प्यासा वापस चला गया इस वजह से वह बहुत दुखी हुई और पश्चाताप से भर गयी और एक ही रट लगी रहती थी

भै भूखो मैं सीति भै भूखो में सीति और इसी दुख मे उसके प्राण चले गये, और अगले जनम में वह न्योली नाम की चिड़िया के रूप में पैदा हुई और कहा जाता है कि वह इस माह में आज भी दुखी रहती है, और जोर जोर से गाती है भै भूखो में सीति भै भूखो मैं सीति, जिसे इस महिने आप आराम से सुन सकते हैं,

लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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