भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ये बदलाव न केवल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण हैं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को भी कमजोर करते हैं। अदालत ने केंद्र और संबंधित राज्यों से जवाब मांगा है कि आखिर क्यों वक्फ संपत्तियों और बोर्डों के संचालन में न्याय और पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि यदि किसी एक समुदाय की संस्थाओं पर अत्यधिक नियंत्रण लगाया जा रहा है, तो यह संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि संशोधन के तहत वक्फ बोर्डों को अपनी संपत्तियों और निर्णयों पर स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जा रहा, जो संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा हनन है।
क्या यह कानून धर्मनिरपेक्षता की नींव को हिला देगा?
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी न सिर्फ कानूनी बहस को हवा दे रही है, बल्कि देशभर में एक नई बहस की चिंगारी भी भड़का रही है — धर्मनिरपेक्ष भारत में धार्मिक संस्थाओं की स्वतंत्रता कितनी सुरक्षित है?