पाकिस्तान की फौज के मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को “फील्ड मार्शल” की उपाधि से नवाज़ा गया है — एक ऐसा रुतबा जो पाकिस्तानी इतिहास में बेहद दुर्लभ है। पर क्या इस सम्मान की आड़ में कोई बड़ी राजनीतिक चाल छिपी है? इतिहास की ओर नजर डालें तो इस सवाल का जवाब डरावना है।
पिछला उदाहरण बना था तानाशाही की दस्तक!
पाकिस्तान में इससे पहले फील्ड मार्शल की उपाधि केवल एक बार दी गई थी — और वो थे जनरल अयूब ख़ान। परिणाम? देश में सैन्य तख्तापलट, लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया और एक लंबे समय तक पाकिस्तान ने तानाशाही का दौर झेला। अयूब ख़ान न सिर्फ सेना के मुखिया बने रहे, बल्कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर भी कब्जा जमा लिया था।
अब एक बार फिर वही इतिहास खुद को दोहराने की ओर बढ़ रहा है क्या? ये सवाल आम पाकिस्तानी नागरिक से लेकर वैश्विक विश्लेषकों तक को बेचैन कर रहा है।
क्या है फील्ड मार्शल की उपाधि?
“फील्ड मार्शल” सेना में सर्वोच्च दर्जा होता है, जो आमतौर पर युद्ध में असाधारण नेतृत्व के लिए दिया जाता है। लेकिन पाकिस्तान में इसका उपयोग अक्सर सत्ता की केंद्रीकरण की ओर इशारा करता रहा है।
राजनीतिक समीकरणों में हलचल
राजनीतिक हलकों में हलचल है कि यह उपाधि सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि आसिम मुनीर को सत्ता में लंबे समय तक टिकाए रखने की एक रणनीति हो सकती है। इमरान ख़ान के खिलाफ सेना की भूमिका और देश की मौजूदा अस्थिरता इस फैसले को और भी संदिग्ध बनाती है।