भारत में तंबाकू हर साल 13.5 लाख लोगों की जान लेता है, लेकिन Quit करने की दर केवल 7% है। विशेषज्ञों का मानना है कि पारंपरिक Quit उपायों की सीमित सफलता को देखते हुए, विज्ञान-समर्थित हानि-नियंत्रण (harm reduction) रणनीतियों की आवश्यकता है। इनमें धुएं रहित निकोटिन विकल्प जैसे कि निकोटिन पाउचेस शामिल हैं, जो धूम्रपान की तुलना में 95% कम हानिकारक माने जाते हैं।
डॉ. पवन गुप्ता, वरिष्ठ सलाहकार, पल्मोनरी मेडिसिन, BLK-MAX सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, दिल्ली के अनुसार, “COPD या हृदय रोगों के मरीजों के लिए हर सिगरेट बचाना महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक अध्ययन, जिनमें रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियन (UK) द्वारा किए गए अध्ययन शामिल हैं, यह दर्शाते हैं कि गैर-दहनशील निकोटिन विकल्प धूम्रपान की तुलना में कम जोखिमपूर्ण होते हैं।”
पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) के अनुसार, धुएं रहित निकोटिन विकल्पों में टार और दहन की अनुपस्थिति के कारण ये धूम्रपान की तुलना में 95% कम हानिकारक होते हैं।
डॉ. सुनैना सोनी, सहायक प्रोफेसर, AIIMS-CAPFIMS सेंटर, कहती हैं, “पारंपरिक Quit उपायों की सीमित सफलता को देखते हुए, सुरक्षित, तंबाकू-मुक्त निकोटिन विकल्पों को सख्त नियमन के तहत अपनाना उपयोगकर्ताओं को सिगरेट से दूर करने में मदद कर सकता है।”
भारत में तंबाकू से संबंधित बीमारियों पर हर साल ₹1.77 लाख करोड़ से अधिक खर्च होता है, और हर दसवां भारतीय तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण समय से पहले मरता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि तंबाकू उपयोग को 2025 तक 30% तक कम करने के लिए WHO के लक्ष्यों के तहत, सुरक्षित निकोटिन विकल्पों को अपनाना एक प्रभावी कदम हो सकता है।