वैज्ञानिक की सजा पर हाईकोर्ट की रोक: ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य हित’ में लिया ऐतिहासिक फैसला

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने वेक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव की दोषसिद्धि (IPC धारा 306—पत्नी की आत्महत्या में उकसावा) और पाँच वर्ष की कड़ी सज़ा पर स्थगन प्रदान किया है। न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की एकल पीठ ने इस निर्णय को “बड़े सार्वजनिक हित”, विशेषकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली की दृष्टि से उचित बताया है।

डॉ. यादव, जिनके पास आईआईटी खड़गपुर से बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी है, Indian Immunologicals Ltd. में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं और वे तीन वर्षों से वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास में संलग्न हैं।

पूर्व में रुद्रपुर की निचली अदालत ने दहेज हत्या संबंधी आरोपों (धारा 304‑B, Dowry Prohibition Act) से उन्हें बरी कर दिया था, लेकिन आत्महत्या के उकसावे के आरोप में दोषी बनाया गया था। हाई कोर्ट पहले ही पहले जमानत पर उन्हें रिहा कर चुकी थी और अब सजा की निष्पादन भी तब तक रोकी गई है, जब तक अपील पूरी तरह न निपट जाए।

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के Navjot Singh Sidhu और Rama Narang जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में जहाँ पेशे का सार्वजनिक महत्व हो, दोषसिद्धि को निलंबित करना न्यायसंगत है।

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