बानू मुश्ताक: कर्नाटक की लेखिका ने इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता, पहली बार कन्नड़ साहित्य को मिला सम्मान

बानू मुश्ताक, कर्नाटक की 77 वर्षीय लेखिका, ने 2025 का प्रतिष्ठित इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है। उनकी कन्नड़ भाषा में लिखी गई लघु कथा संग्रह ‘हार्ट लैम्प’ को दीपा भास्थी ने अंग्रेजी में अनुवादित किया है। यह पुरस्कार पहली बार किसी कन्नड़ भाषा की कृति को मिला है, और यह पहली बार है जब किसी लघु कथा संग्रह को यह सम्मान प्राप्त हुआ है।

बानू मुश्ताक के बारे में 5 महत्वपूर्ण बातें:

कन्नड़ साहित्य में योगदान: बानू मुश्ताक ने ‘बंदया साहित्य’ आंदोलन में भाग लिया, जो 1970 और 1980 के दशकों में जातिवाद और पितृसत्ता के खिलाफ था।

लघु कथा संग्रह ‘हार्ट लैम्प’: यह संग्रह 12 लघु कथाओं का संकलन है, जो 1990 से 2023 के बीच लिखी गई हैं। ये कथाएँ दक्षिण भारत के मुस्लिम और दलित महिलाओं की ज़िंदगियों को उजागर करती हैं।

अनुवादक दीपा भास्थी: दीपा भास्थी ने इस संग्रह का अंग्रेजी में अनुवाद किया है और वह पहली भारतीय अनुवादक हैं जिन्होंने इस पुरस्कार को जीता है।

सामाजिक सक्रियता: वह एक वकील और महिला अधिकारों की सक्रिय कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश के अधिकार के लिए संघर्ष किया है।

पुरस्कार और सम्मान: उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार जैसे कई सम्मान प्राप्त हैं।

‘हार्ट लैम्प’ का अनुवाद कन्नड़, हिंदी, उर्दू, तमिल और मलयालम में भी हुआ है, और यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ भाषा की कृति को इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिला है। बानू मुश्ताक की यह उपलब्धि भारतीय क्षेत्रीय साहित्य की वैश्विक पहचान को दर्शाती है।

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