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लॉकडाउन में काम-धंधे चौपट, रोजी-रोटी के लिए भटकते कामगारों की दब गई ‘हक’ की आवाज

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आज एक ऐसा दिवस है जो दुनिया भर के कामगारों के प्रति समर्पित माना जाता है । समाज का एक ऐसा मजबूत वर्ग जो सभी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है । जी हां हम बात कर रहे हैं अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस की । हर साल 1 मई को मनाया जाने वाला इस दिवस को कई नामों से जाना जाता है, इस दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है।

ये दिवस पूरी तरह श्रमिकों को समर्पित है। आज के दिन दुनिया भर के कामगार, मजदूर अपने ‘अधिकारों’ की आवाज उठाते रहे हैं । लेकिन पिछले साल से दुनिया के तमाम देशों में कोरोना और लॉकडाउन में सबसे अधिक मजदूर और श्रमिक वर्ग ही प्रभावित हुआ है । पिछले वर्ष महामारी के वजह से मजदूरों, कामगारों का ‘पलायन’ दुनिया ने देखा था।

पिछले कुछ महीनों से फिर वही स्थित देखने को मिल रही है। मुंबई, दिल्ली समेत तमाम बड़े शहरों में रहने वाले श्रमिक अपने परिवार के साथ घरों पर लौटने के लिए विवश है। सही मायने में रोजी-रोटी का संकट भी गहराता जा रहा है । लॉकडाउन की वजह से देश में उद्योग-धंधे पर मार पड़ी है, जिससे कामगारों में भारी निराशा है । किसी भी देश के विकास में वहां के मजदूर का सबसे बड़ा योगदान होता है।

ऐसे में यह दिवस उनके हक की लड़ाई उनके प्रति सम्मान भाव और उनके अधिकारों के आवाज को बुलंद करने का प्रतीक है। लेकिन मौजूदा समय में श्रमिक और कामगारों के पास काम नहीं है । आज देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं । आपको बता दें कि मेहनतकश मजदूरों को समर्पित एक मई की तारीख समारोह के तौर पर पूरी दुनिया में मनाई जाती है।

इस मौके का मुख्य मकसद श्रमिकों व मजदूरों के उल्लेखनीय योगदान को याद करना है। दरअसल किसी भी समाज देश, संस्था और उद्योग में मजदरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। किसी भी उद्योग को सफल बनाने के लिए उसके मालिक का होना तो अहम है ही मजदूरों के अस्तित्व को भी नहीं नकारा जा सकता है क्योंकि कामगार ही किसी भी औद्योगिक ढांचा के लिए संबल की भूमिका निभाते हैं।

बता दें कि श्रमिक दिवस पर 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है। वहीं अमेरिका में आधिकारिक तौर से सितंबर के पहले सोमवार को मजदूर दिवस मनाया जाता है। हालांकि मई डे की शुरुआत अमेरिका से ही हुई थी।

वर्ष 1886 में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की अमेरिका से हुई थी शुरुआत—

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत अमेरिका के शिकागो से हुई थी। धीरे-धीरे यह दुनिया के कई देशों में फैल गया। अमेरिका में 1886 में मई डे के मौके पर 8 घंटे काम की मांग को लेकर 2 लाख मजदूरों ने देशव्यापी हड़ताल कर दी थी। उस दौरान काफी संख्या में मजदूर सातों दिन 12-12 घंटे लंबी शिफ्ट में काम किया करते थे और सैलरी भी कम थी। बच्चों को भी मुश्किल हालात में काम करने पड़ रहे थे। अमेरिका में बच्चे फैक्ट्री, खदान और फार्म में खराब हालात में काम करने को मजबूर थे। इसके बाद मजदूरों ने अपने प्रदर्शनों के जरिए सैलरी बढ़ाने और काम के घंटे कम करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया।

जिसके खिलाफ 1 मई 1886 के दिन कई मजदूर अमेरिका की सड़कों पर आ गए और अपने हक के लिए आवाज आवाज बुलंद करने लगे। इस दौरान पुलिस ने कुछ मजदूरों पर गोली चलवा दी। जिसमें 100 से अधिक घायल हुए जबकि कई मजदूरों की जान चली गई। इसी को देखते हुए 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक के दौरान 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया। साथ ही साथ सभी श्रमिकों का इस दिन अवकाश रखने के फैसले पर और आठ घंटे से ज्यादा काम न करवाने पर भी मुहर लगी।

वहीं भारत के चेन्नई में 1 मई 1923 में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में मजदूर दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी । इस दौरान कई संगठनों व सोशल पार्टियों का समर्थन मिला, जिसका नेतृत्व वामपंथी कर रहे थे। आपको बता दें कि पहली बार इसी दौरान मजदूरों के लिए लाल रंग का झंडा वजूद में आया था। जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का सबसे महत्वपूर्ण दिवस बन गया ।

बता दें कि किसी भी देश समाज और उद्योग को आगे बढ़ाने में मजदूरों की भूमिका अहम होती है। इस दिन कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और फैक्ट्रियों में कामगारों को उपहार भी दिए जाते हैं।

वहीं कई मजदूर संगठन एकजुट होते हैं और कामगारों से उनके काम में आ रही परेशानियों के बारे में बातचीत करते हैं। लेकिन इस लॉकडाउन और दुनिया भर में बढ़ता रोजगार के संकट से ये मजदूर सहमे हुए हैं।

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